शुक्रवार, 4 मई 2012

दो पल जीवन में


[आज त्रिवेणी में  डॉ. हरदीप कौर संधु के  हिन्दी माहिया दिए जा रहे हैं । इस छन्द में गेयता प्रमुख है , अत: कभी -कभी कुछ लोग गुरु मात्रा को दबाकर लघु रूप में भी उच्चरित किया जाता है । हम इससे पूर्णतया सहमत नहीं हैं। इस छन्द में पहली और तीसरी पंक्ति  में 12 -12 मात्राएँ तथा दूसरी पंक्ति में 10 मात्राएँ होती हैं । पहली और तीसरी पंक्ति  तुकान्त होती है । ]
प्रस्तुति :-रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
1.
दिल जब-जब रोता है
आवाज़ न आती
दर्द बहुत होता है 
2
आँखों में पानी है
बिन कुछ भी बोले 
कह रही कहानी हैं 
3
बादल से जल बरसे
तन तो भीग गया
प्यासा ये मन तरसे 
4
जिन्दगी अधूरी है
 दो पल जीवन में
हँसना भी जरूरी है 
5
 जीवन इक सपना है
आँख खुली ,देखा
कौन यहाँ अपना है ।
6
घर जो  यह तेरा है
नाज़ुक शीशे का  
इक रैन बसेरा है 
-0-

5 टिप्‍पणियां:

रविकर ने कहा…

आभार ||

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत सुंदर ...एक और नयी विधा का पता चला

Anant Alok ने कहा…

वाह बहुत सुंदर ...बधाई |

ऋता शेखर 'मधु' ने कहा…

सुंदर और सार्थक...लयबद्ध रचना!

डॉ. दिलबागसिंह विर्क ने कहा…

पंजाबी की विधा का हिंदी में शानदार प्रयोग