ज्योत्स्ना प्रदीप
1
सोई आँखें मूँदें
छोड़ गई मन
माँ
ग़म की अनगिन बूँदें ।
2
जो हमको समझाती
जिसने जनम दिया
इक दिन वो भी जाती !
3
बिन नींदों की
रैना
तेरे जाने से
भरते रे घन-नैना ।
4
कैसी लाचारी थी
आँखों की पीड़ा
होठों न उतारी थी !
5
माँ जैसा कब कोई
तेरी छाँव
तले
मीठी नींदें
सोई ।
6
मुरझाई तुलसी है
तेरी छाँव नहीं
श्यामा भी झुलसी है ।
7
कुछ अपनों को लूटें
फ़ूलों की क्यारी
कुछ ज़हरीले बूटे ।
8
वो घर था माई का
जब वो छोड़ चली
घर है अब भाई
का ।
9
हर बेटी रोती
है
मात -पिता के बिन
मैके ग़म ढोती है ।
10
मैका अब छूट गया
पावन नातों को
लालच ही लूट गया !
11
अपने ही छलते हैं
दीपक के भीतर
अँधियारे पलते हैं ।
12
कुछ ख़ास मुखौटे थे
आँखों की चिलमन
सोने के
गोटे थे ।
13
धन का आलाप करें
इसकी ही ख़ातिर
'अपने 'ही पाप करें ।
14
जिसने दौलत लूटी
करतल खाली थी
काया जब भी छूटी !
15
वो प्यारा नग दे दो
छू लूँ पाँवों को
पावन वो पग दे दो !
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12 टिप्पणियां:
बहुत भावपूर्ण माहिया ज्योत्स्ना जी। 7 व 11 विशेष पसन्द आये। बधाई।
अधिकतर बेटियों का दुर्भाग्यपूर्ण दर्द बहुत ही ख़ूबसूरती से उकेरा है, प्रिय सखी ज्योत्स्ना जी! मन को भिगो गए सभी माहिया! बहुत-बहुत बधाई इस उत्कृष्ट सृजन के लिए!
~सस्नेह
अनिता ललित
सारे माहिया हृदयस्पर्शी
माँ और मायका...बेटियों के दर्द साझा करती हर रचना विशेष भाव से परिपूर्ण|
ज्योत्सना जी को बहुत बहुत बधाई|
ह्रदयस्पर्शी माहिया
हार्दिक बधाई आदरणीया!
सादर
विविध भावों के मर्मस्पर्शी माहिया,विशेषतःबेटियों के दर्द की भावुक अभव्यक्ति के माहिया अन्तस् को छू लेते हैं।बधाई ज्योत्स्ना जी।
मर्मस्पर्शी हाइकु...हार्दिक बधाई ज्योत्स्ना प्रदीप जी।
पहली टिप्पणी के लिए क्षमा चाहती हूँ।
मर्मस्पर्शी माहिया..हार्दिक बधाई ज्योत्स्ना प्रदीप जी।
बहुत सुंदर भावपूर्ण माहिया । कुछ माहिया तो विँशेषरूप से मन को छू गए।बधाई ज्योत्सना जी ।
हृदयस्पर्शी माहिया।बधाई ज्योत्सना जी ।
ज्योत्स्ना जी आपके माहिया इतने मर्मस्पर्शी थे कि आँख नम कर गए! 6,7,8,10,12 तो बहुत ही प्रभावी थे, आपको उत्कृष्ट रचना के लिए मेरी ओर से बधाई!
ज्योत्स्ना जी बहुत मार्मिक, भावपूर्ण माहियां हैं हार्दिक बधाई स्वीकारें |
आद.भैया जी एवँ प्यारी बहन हरदीप जी का हृदय से आभार मेरे माहिया को यहाँ स्थान देने के लिए !
आप सभी साथियों का भी तहे दिल से शुक्रिया !
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