गुरुवार, 20 जून 2024

1182-ज़िन्दगी बौनी

- डॉ. जेन्नी शबनम 



1.
दहलीज़ पे
बैठा राह रोकके 
औघड़ चाँद 

न आ सका वापस 

मेरा दर्द या प्रेम।

 2.

ज़िन्दगी बौनी
आकाश पे मंज़िल
पहुँचे कैसे?
चारों खाने चित है
मन मेरा मृत है।
3.

गहन रात्रि
सुनसान डगर
किधर चला?
मेरा मन ठहर
थम जा तू इधर।
4.

तुम्हारा स्पर्श
मानो जादू की छड़ी
छूकर आई
बादलों को प्यार से 
ऐसी ठण्डक पाई।
5.

ग़ायब हुए
सिरहाने से ख़्वाब
छुपाया तो था
काल की नज़रों से,
चोरी हो गए ख़्वाब। 

6.

कोई न सगा 
सब देते हैं दग़ा
नहीं भरोसा,
अपना या पराया

दिल मत लगाना। 
7.

मैंने कुतरे
अपने बुने ख़्वाब

होके लाचार,   

पल-पल मरके

मैंने रचे थे ख़्वाब।  

 8.

मैं गुम हुई
मन की कंदराएँ
बेवफ़ा हुईं,

कोई तो होगी युक्ति   

जो मुझे मिले मुक्ति।  

9. 
मेरे सपने 

आसमाँ में जा छुपे 

मैं कैसे ढूँढूँ

पाखी से पंख लिये 

सूर्य ने है जला  

10. 
मेरी तिजोरी
जिसे छुपाया वर्षों
हो गई चोरी
जहाँ ख़ुशियाँ मेरी
छुपी रही बरसों।

-0-

8 टिप्‍पणियां:

भीकम सिंह ने कहा…

वाह, बहुत सुंदर ताॅंका, हार्दिक शुभकामनाऍं।

Ramesh Kumar Soni ने कहा…

प्रेम की कसक लिए हुए सुंदर ताँका की हार्दिक बधाई।

बेनामी ने कहा…

पाखी से पँख लिए / सूर्य ने हैं जलाए। सभी ताँका बहुत ही सुंदर है। हार्दिक बधाई। सुदर्शन रत्नाकर

रश्मि विभा त्रिपाठी ने कहा…

बहुत सुंदर और भावपूर्ण ताँका।
हार्दिक बधाई आदरणीया 💐🌷

सादर

बेनामी ने कहा…

बहुत सुन्दर और भावनात्मक

Krishna ने कहा…

बहुत सुंदर तांका...हार्दिक बधाई।

प्रीति अग्रवाल ने कहा…

बहुत सुंदर तांका रचे हैं जेन्नी जी!!

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

मेरी रचनाओं को स्नेह व सराहना के लिए आप सभी को बहुत-बहुत आभार।