- डॉ. जेन्नी शबनम
1.
दहलीज़ पे
बैठा राह रोकके
औघड़ चाँद
न आ सका वापस
मेरा दर्द या प्रेम।
2.
ज़िन्दगी बौनी
आकाश पे मंज़िल
पहुँचे कैसे?
चारों खाने चित है
मन मेरा मृत है।
3.
गहन रात्रि
सुनसान डगर
किधर चला?
मेरा मन ठहर
थम जा तू इधर।
4.
तुम्हारा स्पर्श
मानो जादू की छड़ी
छूकर आई
बादलों को प्यार से
ऐसी ठण्डक पाई।
5.
ग़ायब हुए
सिरहाने से ख़्वाब
छुपाया तो था
काल की नज़रों से,
चोरी हो गए ख़्वाब।
6.
कोई न सगा
सब देते हैं दग़ा
नहीं भरोसा,
अपना या पराया
दिल मत लगाना।
7.
मैंने कुतरे
अपने बुने ख़्वाब
होके लाचार,
पल-पल मरके
मैंने रचे थे ख़्वाब।
8.
मैं गुम हुई
मन की कंदराएँ
बेवफ़ा हुईं,
कोई तो होगी युक्ति
जो मुझे मिले मुक्ति।
9.
मेरे सपने
आसमाँ में जा छुपे
मैं कैसे ढूँढूँ?
पाखी से पंख लिये
सूर्य ने है जलाए।
10.
मेरी तिजोरी
जिसे छुपाया वर्षों
हो गई चोरी
जहाँ ख़ुशियाँ मेरी
छुपी रही बरसों।
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8 टिप्पणियां:
वाह, बहुत सुंदर ताॅंका, हार्दिक शुभकामनाऍं।
प्रेम की कसक लिए हुए सुंदर ताँका की हार्दिक बधाई।
पाखी से पँख लिए / सूर्य ने हैं जलाए। सभी ताँका बहुत ही सुंदर है। हार्दिक बधाई। सुदर्शन रत्नाकर
बहुत सुंदर और भावपूर्ण ताँका।
हार्दिक बधाई आदरणीया 💐🌷
सादर
बहुत सुन्दर और भावनात्मक
बहुत सुंदर तांका...हार्दिक बधाई।
बहुत सुंदर तांका रचे हैं जेन्नी जी!!
मेरी रचनाओं को स्नेह व सराहना के लिए आप सभी को बहुत-बहुत आभार।
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