ज्योत्स्ना प्रदीप
1
ये कैसे नाते हैं ?
गठबंधन पर भी
सब बँध ना पाते हैं ।
2
बंधन तो हैं मन के
बादल के आँसू
जीवन हैं हर तन के।
3
सरिता भी प्यार
करे
मिलकर सागर में
इसका इज़हार करे ।
4
सागर में हैं मोती
लहरें भी इसकी
नित मुख इनके
धोती।
5
फूलों ने प्यार
किया
धरती के तन का
जीभर शृंगार किया।
6
पाहन में बहुत अगन
चोट न दो उसको
झुलसा देगी कानन।
7
दिल मानव का
रीता
भू ने रोकरके
आँचल में ली
सीता।
8
हाँ,
प्रीत यही होती
पर की पीड़ा में
आँखें तेरी रोती।
9
धरती का है सपना-
रवि के ले फेरे
करले उसको अपना।
-0-
10 टिप्पणियां:
बहुत सुंदर माहिया ज्योत्स्ना जी ! विशेकर १ला व ८वाँ।
हार्दिक बधाई आपको !
~सादर
अनिता ललित
Absolutely beautiful!
The first and eighth are awesome!!
दिल मानव का रीता
भू ने रोकरके
आँचल में ली सीता।
bahut sunder
badhai
rachana
dil manav ka reeta
bhu ne ro karake
anchal mein lee seeta.
bahut sunder panktiyan hain.jyotsna ji badhai.
Khub ata ate sunder
Bahut gahan Javab nahi hardik badhai...
सरिता भी प्यार करे
मिलकर सागर में
इसका इज़हार करे ।
aap sabhi gunijano ne mujhe protsahit kiya hai ...hridy tal se abhaar...ABHAAR.
हाँ, प्रीत यही होती
पर की पीड़ा में
आँखें तेरी रोती।
yahi satya hai...bohot hi lajawaab mahiye....
हाँ, प्रीत यही होती
पर की पीड़ा में
आँखें तेरी रोती।
yahi satya hai...bohot hi lajawaab mahiye....
बहुत सुन्दर माहिया...| हार्दिक बधाई...|
एक टिप्पणी भेजें