1-कृष्णा वर्मा
1
बड़ा अधीर
होता ये ख़ारा नीर
झरे ज़रा -सी पीर
झट ढो लाए
जा हृदय का भार
नैन- नदी के तीर।
1
माटी के हम
औ बनाए हमने
रेत के ही मकान
थमा ना कभी
सिलसिला तूफानी
कैसे निभे गुमान।
3
हैं स्मृतियों के
धुँधले दर्पण में
पूर्ण पलों की छाया
टँगे सवाल
उलझन की खूँटी
क्या-क्या खोया,क्या पाया।
4
लगने लगा
अनायास यादों का
सतरगी बाज़ार
ढलने लगीं
मेरी जीवन शामें
यादों की रौनक में।
-0-
पिटारी
यादों वाली-सीमा स्मृति
आज याद
कि पिटारी में से एक याद का मोती आप सब के लिए निकल आया। शायद से बात सन् उन्नीसों बहत्तर की है -मैं केवल नौ
वर्ष की थी। मुझे टेलीविजन देखने का बहुत शौक था। मैं उस समय की बात कर रही हूँ ,जब टेलीविजन के शुरूआती दिन थे। पूरे मोहल्ले में एक ही घर पर एंटिना दिखाई देता था। मुझे
टेलीविजन देखने की इतनी रुचि थी कि मैं अपने मोहल्ले की लाइट ना होने पर कभी कभी दूसरे मोहल्ले के घर में
टेलीविजन देखने चली जाती थी । कोई कोई टेलीविजन वाला घर तो इतवार को फिल्म आने वाले दिन, पचीस पैसे टिकट लगा देता था मुझे याद
है, हमारे सामने वाले घर में टेलीविजन वाली आण्टी की बेटी से मेरी दोस्ती थी । हम दोनों हमेशा घर–घर, स्टापू,गिट्टे रस्सा कूदना,पिठू-गर्म
जाने क्या क्या खेल साथ साथ खेलते थे। एक दिन रंजना से मेरी
लड़ाई हो गई। शायद बात मम्मियों तक पहुँच
गई। ओहो वो दिन था इतवार । फिल्म आने का दिन, मैं उन के गेट पर अन्दर जाने को खड़ी थी । तभी उसकी मम्मी दनदनाती हुई निकल
कर आई और बोली कि खबरदार जो घर में घुसी, तेरी एक टाँग तो खराब है, लगड़ी है, दूसरी
भी तोड़ दूँगी(मेरी टाँगो में पोलियो है)और मुझे वहाँ से
भागा दिया । मैं उनकी लगड़ी बात से ज़्यादा दुखी नहीं हुई अपितु फिल्म ना देख पाने के दु:ख के कारण रो रही थी ।
मेरे पिता जी ने मुझे बहुत समझाने कि कोशिश की पर मेरा
वो दुख तो फिल्म न
देख पाना था । मैं रोते रोते सो गई। अगले दिन उदास मन से स्कूल चली गई। मुझे याद है स्कूल में पढ़ाई में दिल नहीं
लग रहा था ;बल्कि मैं रंजना से पुन: दोस्ती करने के उपाय सोच रही थी। दोपहर को जब मैं घर आई तो मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा । मेरे पिता जी हमारे लिए वेस्टन कम्पनी का एक नया टेलीविजन ले आये थे । मम्मी ने बताया कि
पापा ने कल साथ वाली आण्टी ने जो मुझे टाँग तोड़ने वाली बात कही थी, वो सुन ली थी । थोड़े दिनों बात मैं देखा कि पापा शाम को घर
देर से आने लगे । मैं कई बार पापा के आने का इंतजार करते करते सो जाने लगी और कभी सुबह
देखती कि पापा का गला खराब है ,वो अकसर
गरारे कर रहे होते थे ।मैंने मम्मी से पूछा कि पापा आजकल
इतनी देर से क्यों आते हैं, तो मम्मी
ने बताया कि हमारे पास इतने रुपये नहीं थे कि
टेलीविजन खरीद सकें।उन्होंने अपने दोस्त से उधार लिया है। ये टेलीविजन बहुत मँहगा है। चार
हजार रुपये का है; इसलिए तेरे पापा
अपने स्कूल के बाद तीन जगह ट्यूशन पढ़ाने जाते हैं; ताकि हम उधार चुका सकें। आज भी
मेरे जहन में टेलीविजन का वो मूल्य जो रोज सुबह पापा के गरारों के रूप में सुनाई देता था, याद है । आज हमारे घर
में चार टेलीविजन हैं और पापा बहुत शौक से दिन भर अपने कमरे में टेलीविजन देखते
रहते हैं-
मिश्री -सी मीठी
निबौरी सी –कड़वी
अनन्त यादें।
- सीमा स्मृति
12 टिप्पणियां:
बहुत बढ़िया। बधाई!!!
कृष्णा जी के सेदोका और सीमा जी का पुरानी यादों से सजा हाइबन खूबसूरत लगे .दोनों को बधाई .
सीमा जी , बहुत भावुक कर देना वाला हाइबन, ऐसी यादें तो सब की पास हैं | बधाई | कृष्णा जी बहुत गहरे सेदोका | बधाई |
शशि पाधा
कृष्णाजी सुंदर सेदोका। सामाजिक भावपूर्ण हाइबन। दोनो को बधाई।
बहुत भावपूर्ण हाइबन सीमा जी...बधाई!
हाइबान और सेदोका दोनों ही सुंदर हैं ,कृष्णाजी व सीमा जी बधाई|
पुष्पा मेहरा
आज भी मेरे जहन में टेलीविजन का वो मूल्य जो रोज सुबह पापा के गरारों के रूप में सुनाई देता था, याद है ....this is the punch line of this sensational and emotional हाइबन.
माटी के हम
औ बनाए हमने
रेत के ही मकान ...........very true and well said !
hardeep sandhu
कृष्णा दीदी, सभी सेदोका बहुत सुंदर ! 'बड़ा अधीर.. खारा नीर...' दिल को छू गया। आपको हार्दिक बधाई !
सीमा जी, भावपूर्ण एवं मार्मिक हाइबन ! माता-पिता अपने बच्चों के लिए जीवन में न जाने कितने कड़वे घूँट ख़ुशी-ख़ुशी, ख़ामोशी से पी जाते हैं और बच्चों को ख़बर भी नहीं होती। इसीलिए तो... उनका क़र्ज़ कभी नहीं उतारा जा सकता ! हार्दिक बधाई आपको !
~सादर
अनिता ललित
sedoka achhe hain par haiban padhkar dil bhar aaya anmol hain ye yaaden to...
बहुत भावपूर्ण सेदोका सभी ..कृष्णा दीदी ..हार्दिक बधाई !
मार्मिक हाइबन सीमा जी ...कुछ कहते नहीं बन रहा ..बस शुभ कामनाएँ !!
बहुत मार्मिक हाइबन है...| ऐसे लोगों से मुझे नफरत सी होती है जो इस तरह किसी की भावनाएँ आहत करते हैं...| आप तो बच्ची थी, पर आपके पापा को कितनी पीड़ा हुई होगी...इसका सही अंदाज़ा भी लगाना मुश्किल होगा | मेरी बधाई...|
कृष्णा जी...बहुत अच्छे सेदोका हैं...| हार्दिक बधाई...|
माटी के हम
औ बनाए हमने
रेत के ही मकान !
बहुत भावपूर्ण सेदोका दिल को छू गया।
... मार्मिक हाइबन .. .कृष्णाजी व सीमा जी .हार्दिक बधाई !
एक टिप्पणी भेजें