उधारे बोल
डॉ हरदीप सन्धु
बसंती ऋतु का आम सा दिन। खिले फूलों जैसी हँसी बिखेरते
बातों में लगे विद्यार्थी। मगर वह तो हमेशा की तरह आज भी चुप -चाप बैठी थी।
वही भावहीन चेहरा ,सिले लब तथा झुकी नज़रें। लगता था कि उसने ताउम्र
लम्बी चुप्पी से समझौता कर लिया है। न वह गूँगी है ,न ही बोली मगर फिर भी वह अपने चारों ओर दूर -दूर तक फैले चुप्पी के
मरुस्थल का सफ़र प्रतिदिन करती लगती है।
पहले -पहले
तो मुझे लगा कि वह हद से ज्यादा शर्मीली है। धीरे धीरे खुल जाएगी मगर यह दिन कभी न
आया। पंद्रह वर्ष की इस लड़की को मैंने हमेशा ही चुप्पी का आँचल ओढ़े ख़ामोश परछाईं
के नीचे खड़े पाया है। कभी- कभी वह मुझे एक अनबूझ सवाल -सी लगती है ,तो कभी धरा -अम्बर के गहरे रहस्य -सी। उसके कोमल लबों पे हँसी ने कभी
दस्तक नहीं दी थी, शायद जन्मी तो वह चुप्पी में नहीं होगी।
साधारण से नैन -नक्शों वाली वो दीवानगी की हद तक सलीके वाली है। अब भी वह सुंदर
अक्षरों को कलात्मकता से कोरे पन्नों पर सजो रही है।
भीतर तक उतरती
उसकी चुप्पी ने मेरे दिल -दिमाग की परतें उलट-पलट कर डालीं।
चुप्पी की भाषा महसूस करने पर मुझे उसके व्यक्तित्व से जुड़ी भीतरी पीड़ा का अहसास हुआ। वह तो 'सिलेक्टिव म्युटिज़्म' नाम के एक असाधारण से रोग से पीड़ित है। उसने अपने बोल की सहभागिता सम्बन्ध केवल अपने खून के रिश्तों से ही पाई है। घर की चारदिवारी से बाहर आते ही वह चुप्पी
की अँधेरी गुफ़ा में कहीं गुम हो जाती है। उसके मुँह से कभी एक बोल भी नहीं निकला
घर की चौखट के इस पार। वह तो एक बंद काँच के डिब्बे में जिए जा रही है जहाँ से वह
दुनिया को देख तो सकती है ;परन्तु खुद बाहर नहीं आ सकती।
वहाँ बैठी वो चीखती तो है;मगर कोई उसे सुन नहीं सकता। न किसी
ने उसे कभी कुछ खाते-पीते देखा है और न ही
चोट लगने पर कभी रोते। शायद अपने अश्रु वह भीतर ही पी जाती होगी। शब्द उसके मुँह
में होते हैं ,मगर बाहर नहीं आते। शोर उसकी चुप्पी को और
गहरा कर देता है। अब तो चुप्पी ही उसकी पहचान बन गई है।
भरे
दरिया -से मन तथा सूनी -सी निगाहों से
अब भी वह खिड़की से बाहर देख रही है, वृक्ष की टहनी बैठी
रंगीन चिड़ियों की ओर। शायद ये चिड़ियाँ ही उसकी इस चुप्पी को दो बोल उधार दे जाएँ।
गहरी शाम
चहकती चिड़ियाँ
फटकी चुप्पी।
-0-
20 टिप्पणियां:
मार्मिक।
गहन संवेदनशील हाइबन ।
chuppi se shor ka to tana bana buna hi vo kamal hai aapne jin bimbon ka upyog kiya hai bemisal hain bahut sunder likha hai bahan bahut hi marmik
dhnyavad
rachana
ओह कितना मार्मिक ! मन को अन्दर तक भिगो गया |
बधाई |
शशि पाधा
Bahut hi marmim badhai
अत्यंत मार्मिक ! मन को गहरे तक प्रभावित कर गया यह हाइबन। हाइकु भी सोने पर सुहागा। धन्यवाद हरदीप जी।
अत्यंत मार्मिक ! मन को गहरे तक प्रभावित कर गया यह हाइबन। हाइकु भी सोने पर सुहागा। धन्यवाद हरदीप जी।
बहुत हृदयस्पर्शी हाइबन...बधाई हरदीप जी!
bahut sunder likha hai saath hi maarmik bhi! bade hi pyare bimbon ke prayog se aur bhi khoobsurat ban gaya hai ye haiban....haardik badhai hardeep ji !
हृदयस्पर्शी। हरदीप जी आपके हाइबन से एक बहुत पुरानी खोई हुई मित्र याद आ गयी। धन्यवाद।
हृदयस्पर्शी हाईबन डॉ. संधु! शुभकामनाएं!
किसी अज्ञात कारणवश मानसिक कुंठा की शिकार भुक्तभोगी किशोरी की गुप्त मानसिक पीड़ा को व्यक्त करता पाठकों के अंतर्मन में पीड़ा की अनुभूति का तादात्म्य कराता हाइबान अचेतन में समाई पीड़ा की श्रेष्ठतम अभिव्यक्ति का उदाहरण है ,
विशेषता यह है कि बहन संधु जी ने उस बालिका के मनोविज्ञान को भलीभाँति टटोला और सबके बीच साँझा किया इसके लिए वे हार्दिक बधाई की पात्र हैं|
पुष्पा मेहरा
भावों की गहनता
मन की पीड़ा से छाई गहरी चुप्पी ,बहुत मार्मिक हाइबन है डॉ हरदीप जी हार्दिक बधाई .
हृदय स्पर्शी मार्मिक हाइबन लिखने के लिये हरदीप जी बहुत बहुत बधाई ।भावुक हृदय से निकले शब्द रचना का प्रभाव डाल कर ही रहते हैं शुभ कामनायें।
मार्मिक ! मन को छू गया हाइबन ! बहुत बधाई आपको हरदीप जी !
~सादर
अनिता ललित
आप सबका बहुत -बहुत आभार मेरे हर हाइबन की तरह यह हाइबन भी काल्पनिक नहीं है। इस हाइबन को पढ़ते समय हर पाठक का ध्यान चुप्पी पर तो गया मगर इस चुप्पी के कारण तथा स्थान पर नहीं गया। किसी ने उसकी चुप्पी को मानसिक पीड़ा का नाम दिया ,तो किसी ने किसी अज्ञात कारणवश मानसिक कुंठा का नाम दिया। इस रोग को selective mutism( विशिष्ट गूँगापन) कहते हैं जिससे तीन वर्ष की आयु से लेकर जवान लड़के -लड़कियाँ पीड़ित हो सकती हैं। इस में पीड़ित घर में अपनों के साथ होते हुए, तो बोल सकता है ;मगर घर के बाहर नहीं। इस हाइबन वाली लड़की मेरी छात्रा है।लड़की की माँ का कहना है कि ये लड़की घर में सब से बात करती है, मगर देखो बाहर वालों ने कभी इसकी आवाज़ नहीं सुनी। हम उम्र भर तो घर में बैठ कर नहीं जी सकते। घर के बाहर बीतने वाला समय ऐसे पीड़ित के लिए जेल से भी भयानक है। जब मैं इस लड़की से पहली बार मिली तो दूसरे विद्यार्थियों ने बताया कि ये बोलती नहीं है। मैंने उनकी बात पर ध्यान नहीं दिया ।लगा ऐसे ही कहने को उन्होंने कह दिया। मगर धीरे -धीरे मुझे इस लड़की की चुप्पी विचलित करने लगी। ये लड़की हरदम मेरे साथ ही रहती मेरे ख्यालों में। तभी मैंने इसके बारे में शोध किया तो जाकर मुझे इसके वास्तविक कारण का पता चला। और मैंने आपके साथ इसे सांझा किया।
हरदीप कौर सन्धु
!
बहुत मार्मिक...| इस बीमारी के बारे में हाल में ही पता चला था...| उस बच्चे के लिए कितनी पीडादायक स्थिति होती होगी यह...| इंसान तो है ही भावनाओं का पुतला, और जब ऐसे में अपनी भावनाएँ ही व्यक्त न कर पाने की स्थिति से गुज़रना पड़े तो...सोच के ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं...|
क्या कहूँ...? इस हाइबन को पढ़ कर दिल भी जैसे रो पड़ा है...| बस आपकी लेखनी को नमन, जो अपने साथ ऐसे बहा ले जाती है...|
भावों को सुंदरता
बहुत मर्मस्पर्शी हाइबन ... आपकी पर दुख कातर लेखनी को नमन ..और ..उस प्यारी बच्ची के लिए ईश्वर से दुआएँ , प्रार्थनाएँ !
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