आत्मबोध
थाइलैंड की राजधानी में बना मंदिरों वाला रमणीक शहर बैंकॉक। कुछ समय
पहले मुझे वहाँ जाने का अवसर मिला। अम्बर से संवाद रचती ऊँची
इमारतों के बीचो
-बीच एक मंदिर देखा। सोने के बुद्ध वाला मंदिर। 10 -12 फुट ऊँचा शुद्ध सोने से बना हुआ बुद्ध आँखें बंद किए हुए वहाँ समाधि में बैठा
है। पास पड़ा एक काँच का बक्सा इस मूर्ति का इतिहास अपने मुँह से बोलता है।
बारीक़ -बारीक़ लिखे हुए को पढ़ने का मैं असफ़ल प्रयास कर रही थी। मेरे चेहरे पर फैली
उत्सुकता को भाँपते एक सेवादार मेरे
पास आया। उसने बड़ी नम्रता से बताया, " यह
शांत
तथा गंभीर मुस्कान बिखेरता बुद्ध ज़िंदगी के अनबूझ रहस्य अपने भीतर
लिये बैठा है। कहते हैं कि बहुत वर्ष पहले यहाँ किसी मंदिर
वाले स्थान पर हाईवे बनने के कारण एक मिट्टी के बुद्ध की मूर्ति को क्रेन से उठाकर कहीं
और स्थापित करना था। अचानक मूर्ति में दरार आ गई और बदकिस्मती
से बारिश भी होने लगी। मूर्ति को एक बड़े कपड़े से ढक दिया गया और काम भी बंद हो गया।
रात को टीम का मुखिया देखने गया कि वहाँ सब
सही है क्या
? उसको टॉर्च की रौशनी में कपड़े के नीचे कुछ चमक दिखाई दी। उसकी हैरानी
की कोई सीमा ही न रही, जब उसने मूर्ति से मिट्टी
हटाई , वहाँ सोने के बुद्ध की मूर्ति प्रकट हो गई।"
मन में उठते सवालों से
प्रश्न सूचक बना मेरा चेहरा देखते उसने फिर बताना शुरू किया। " उस दिन उस मुखिया की सोच में भी अनगिनत सवाल थे। उसने मूर्ति का भेद खोलने
के लिए अपनी आगे की खोज के परिणाम जब सामने रखे,
तो
पता चला कि कई सौ वर्ष पहले बर्मा की फ़ौज ने थाईलैंड पर धावा बोल दिया था। वहाँ बौद्ध
भिक्षुओं ने सोने की मूर्ति को बचाने के लिए एक खास किस्म की मिट्टी का लेप लगाकर ढक
दिया।हमले में सभी भिक्षु मारे गए तथा यह भेद भी उनके साथ ही दफ़न हो गया था। "
सेवादार तो इतनी बात बताकर
वहाँ से चला गया;मगर मैं अपनी सोच के समंदर में
गहराई से उतर सोच रही थी कि हम सभी मिट्टी के बुद्ध ही तो हैं। हमने खुद को कभी डर -चिंता तथा कभी
क्रोध –अहं के
कठोर नकाब से ढका हुआ है। हर नकाब के नीचे कोई न कोई सोने का बुद्ध बैठा होता है -सोने जैसी शुद्ध
तथा पवित्र आत्मा वाला। जरूरत है इस नकाब को उतारने की। मुझे लगा कि मेरे नए विवेक
की रौशनी में दिखाई दे रहा मेरे सामने बैठा बुद्ध ज़िंदगी के वास्तविक सकून को पाने
के लिए मुझे खुद को खोजने का मशवरा दे रहा हो।
सोने का बुद्ध
बैठा यूँ मुस्कराए
देख मुझको।
-
डॉ हरदीप सन्धु
16 टिप्पणियां:
सच कहा हरदीप जी !
सुंदर हाइबन !
बहुत बधाई!
~सादर
अनिता ललित
सोच के समुद्र का सत्य बोध ।
बधाई खूबसूरत हाइगा ।
सच कहा हरदीपजी आज स्वयं को खोजने की आवश्यकता है। बहुत सुंदर विचार।
ज्ञान वर्धक और आत्म विश्लेशन कराने वाला हाइबन गहरी सोच के मन्थन का परिणाम है। बहुत बहुत बधाई।
माटी की काया, छिपाके बैठी रहे , सोने की आब,ढूंढ लिया जिसने, वही हो गया बुद्ध | हिंसा, अहं,कर्तापन से उपर उठने का भाव लक्षित करता, किसी विशेष भाव को केंद्र में रखकर सबको प्रेरित करने की चेष्टा करता हाइबान सुंदर है|बहुत-बहुत बधाई |
पुष्पा मेहरा
sach kaha badhai aapko
एक नई जानकारी देने के साथ साथ आपने कितनी गहरी बात भी कह दी...| इतने अच्छे हाइबन के लिए मेरी हार्दिक बधाई...|
Bahut shaandaar haiban!
Arthpurn aur saargarbhit!
Dr. Sandhu shubhkaamnaayen!!
हर नकाब के नीचे कोई न कोई सोने का बुद्ध बैठा होता है -सोने जैसी शुद्ध तथा पवित्र आत्मा वाला। जरूरत है इस नकाब को उतारने की। bahan in panktiyon ne bahut gahre tak asar kiya hai
aap ka likha padhne ke liye itjar rahta hai
badhai
rachana
हरदीप जी आपकी अति सुन्दर सोच का परिचायक आपका हाइबन मन पर गहरी छाप छोड़ गया...बहुत-बहुत बधाई।
डॉ हरदीप जी बहुत ही शिक्षाप्रद हाईबन की रचना की है मन में आस जगाई इस हाइबन ने .हार्दिक बधाई की पात्र है आप .
बहुत सुंदर हाइबन हरदीप जी। बधाई
बहुत सुंदर हाइबन हरदीप जी। बधाई
badi gahree baat ko bade hi anuthe dhang se likha hai aapne-
हर नकाब के नीचे कोई न कोई सोने का बुद्ध बैठा होता है -सोने जैसी शुद्ध तथा पवित्र आत्मा वाला। जरूरत है इस नकाब को उतारने की। Arthpurn aur saargarbhit! shubhkaamnaayen!!hardeep ji !
app sab ka bahut-bahut dhniyavad !
सुन्दर हाइबन सखी जी ...बहुत ही सुन्दर ...खूब-खूब बधाई !
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