शुक्रवार, 28 मार्च 2014

पीड़ा में प्रीत बसे

ज्योत्स्ना प्रदीप

1
ये  कैसी रीत हुई
जिसने पीड़ा दी
उस ही से प्रीत हुई।
2
पीड़ा में प्रीत बसे
दुख में जीवन का
हर प्यारा गीत बसे
3
गीतों में आन बसे
देखूँ जब तुमको
वीणा के तार कसे।
4
कैसी है ये भाषा
गती है हर पल
प्यारी सी आशा।
 5
आशा आधार बनी
इसके बिन काया
भू पर बस भार बनी।
6
मन को तो आज गिला।
मेरा बन  के भी
वो मुझसे दूर मिला
7
मिलना तो बस मन का
मीरा के मन में
मुखड़ा था मोहन का।
8
जीवन क्यों यूँ बीता?
अगन परीक्षा दी
तनहा फिर भी सीता
9
जो मन के मोती हैं
पीर उन्हें  ज़्यादा
जग में क्यो होती है?
10
जब सब कुछ छूटे है
दो बूँदें आँसू
ये जग क्यों लूटे है।
11
कैसी ये चाहत है
दो पल चैन नहीं
ना दिल को राहत है।
12
ये कैसा जीवन है?
पल- पल मरते हैं
मछली जैसा मन है
13
ये पीड़ा भी  प्यारी
जीवन समझाती
फिर भी है बेचारी।
-0


6 टिप्‍पणियां:

सविता मिश्रा 'अक्षजा' ने कहा…

बहुत सुन्दर ...सभी

प्रियंका गुप्ता ने कहा…

जो मन के मोती हैं
पीर उन्हें ज़्यादा
जग में क्यो होती है?
कितना सच है...मर्मस्पर्शी...|
बधाई...|

Anita Lalit (अनिता ललित ) ने कहा…

बहुत-बहुत-बहुत.... सुन्दर माहिया !
हार्दिक बधाई ज्योत्स्ना प्रदीप जी !!!

~सादर
अनिता ललित

Pushpa mehra ने कहा…

asha adhar bani,isake bina kya, bhu par bas bhar bani. vastav men ashayen hi manushya ko karmath banati hain.jeevan ko gati deti hain.bahut achha vichar lekhni se sanjoya hai.jyotsna ji apako
badhai.
pushpa mehra.

Unknown ने कहा…

जीवन क्यों यूँ बीता?
अगन परीक्षा दी
तनहा फिर भी सीता।
kya khoob jyotsna ji......sahi kaha aapne naari ko pariksha dekar kya mila?

Jyotsana pradeep ने कहा…

sarahna karne ke liye aap sab ka dhanyavaad