2-डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा
1
फागुन क्या बोल रहा
एक नशा, मस्ती
कण-कण में घोल रहा ।
2
रजनी को भोर बना
मन से मन जोड़े
होली को डोर बना ।
3
क्या भाँग चढ़ाई है
बहकी आज हवा
ये रुत बौराई है ।
4
कैसे हालात हुए
काबू में रखने
मुश्किल जज़्बात हुए ।
5
हैं दिन वैरी , रतियाँ
चैन न लेने दें
वो नेह भरी बतियाँ ।
6
क्या खूब खुमारी है
याद भरा हर पल
विरहिन पर भारी है ।
7
है कठिन भुला पाना
बासंती सरगम
वो केसरिया बाना ।
8
यूँ खेल रहा होली
सरहद पर वीरा
सुन झेल रहा गोली ।
9
गुँझिया गुलनार हुई
भल्लों पर कांजी
सौ बार निसार हुई ।
8 टिप्पणियां:
सुंदर बेहतरीन .........
यूँ खेल रहा होली
सरहद पर वीरा
सुन झेल रहा गोली ।
बहुत भावपूर्ण...दिल को छू गया...| बधाई...|
jyotsnaji aapki meethi meethi gunghiya bahut swadisht lagi.....manmohak..mahiya likhne ke liye saath hi holi ki bahut bahut badhai
atisundar mahiya sabhi :)
ह्रुदर से आभार आप सभी का ...होली की हार्दिक शुभ कामनाएँ !!
सादर
ज्योत्स्ना शर्मा
jyotsana ji apaki lekhani ki har vidha kamal karati hai. bhalon ki kanji ki panktiyan door door ma ki ghani yad dilane ke sath is rangeeli khushi ke mauke par bhi ankhen nam kar gayin unake banaye pakvano va kanji ki yadon ke rangon ne mujhe to pura hi rang diya.sunder mahiya ke liye apako badhai va holi ki anek shubh kamanaen. pushpamehra.
बहुत सुंदर
आदरणीया पुष्पा जी मेरी भावनाओं और अभिव्यक्ति को आपका स्नेह और आशिष मिला मैं हृदय से आभारी हूँ ....लगा कि शायद सभी बेटियाँ ऐसे अवसरों पर एक बार तो मायके की यादों में खो जाती ही हैं .....सदा स्नेह बनाए रखियेगा !
सादर
ज्योत्स्ना शर्मा
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