1-रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
1
बिखेर गया
मन-आँगन कोई
गुलाल अभी,
तड़पा गया
रह-रह करके
उनका ख्याल अभी
-0-
2-रेनु चन्द्रा
1
उड़े अबीर
ढप की थाप पड़े
चंग बजता रहे
रंग गुलाल
मल तन मन पे
सब द्वेष भुलाओ।
2
फाग मैं खेलूँ
कान्हा संग ओ सखी
पिचकारी भर के,
प्रेम रंग से
भीगी चुनरी मोरी
भीग गये गोपाल ।
-0-
8 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर सेदोका !
भैया जी आपका सेदोका तो सच में दिल को छू गया !
रेनू जी आपके सेदोका गुलाल से गुलाबी कर गए ! :)
~सादर
अनिता ललित
himanshu ji,renu ji...phaguni abeer gulal mein range prem mein doobe khoobsurat sedokaye holi ki shubhkaamnaye aap dono ko
bikher gaya, man -angan koi gulal abhi........ sedoka ki paktiyan bahut sunder hain.himanshu bhaiji apko holi ki anek shubhkamnayen,renu ji holi ke rangon se tar sedoka ke liye apko badhai.holi ki shubhkamnayen.
pushpa mehra.
भाई हिमांशु जी ने वाकई जीवन के यथार्थ के रंग घोल दिए .
आप दोनों कि रचनाएँ उत्कृष्ट हैं
बधाई .
बहुत सुन्दर रंग गुलाल ..कहीं भी रहे न कोई भी मलाल ....हार्दिक शुभ कामनाएँ भाई जी ,रेनू जी एवं त्रिवेणी परिवार !!
बिखेर गया
मन-आँगन कोई
गुलाल अभी,
तड़पा गया
रह-रह करके
उनका ख्याल अभी
Bahut khubsurat baav bne hain bilkul gulaal se is sedoka ko padhkar jo khyal pana man ke aangan vo kuch is trha hai...gor pharmaiyega..
ख्याल उनका
दिल की दहलीज़
लाघँकर जो आया
सूखा गुलाब
पन्नों से निकल के
खुशबू भर लाया ।
Bhawna
atisundar ..
बिखेर गया
मन-आँगन कोई
गुलाल अभी,
तड़पा गया
रह-रह करके
उनका ख्याल अभी
फाग मैं खेलूँ
कान्हा संग ओ सखी
पिचकारी भर के,
प्रेम रंग से
भीगी चुनरी मोरी
भीग गये गोपाल ।
होली हो और उसमे प्रेम और विरह के रंग न मिले हो, ऐसा कैसे हो सकता है...|
बहुत मनभावन सेदोका है...आप दोनों को हार्दिक बधाई...|
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