सोमवार, 13 जून 2016

710

कृष्णा वर्मा
1
डूबें सो पाते हैं
दुर्लभ मोती खुद
तट पर ना आते हैं।
2
 जब-जब याद आए
सपने मे आकर
चुपके से  से मिल जाए।
3
तुम इतना याद आए
बेताबी दिल की
टाले ना टल पाए।
4
औषधि सब कुछ न हरे
कुछ पीड़ा का तो
बस नेह इलाज करे।
5
हुलसा बरसा सावन
तेरे बिन साजन
सूखा है मन आँगन।
6
हम कुछ ना कह पाते
लब आज़ाद सदा
मर्यादा आ बाँधे।
7
अपनी बोई फसलें
औरत काट रही
ममता के हैं मसले।
8
ख़्वाबों के फ़ेरों में
लटकी नींद विकल
पलकों के डेरों में।
9
कैसा यह दौर नया
घर चुप्पी पसरी
गूगल पे शोर मचा।
10
यादें फिर हरियाईं
बारिश की बूँदें
जब मटक-मटक आईं।
-0-






5 टिप्‍पणियां:

सविता अग्रवाल 'सवि' ने कहा…

कृष्णा जी सभी माहिया उत्तम लिखे हैं विशेषकर ४,६ और ७ बेहद मन भावन हैं हार्दिक बधाई |

Sudershan Ratnakar ने कहा…

कृष्णा जी माहिया और हाइकु दोनों बहुत सुंदर। बधाई।

Shashi Padha ने कहा…

बहुत खूब माहिया कृष्णा जी | भाव, लय और शब्द सौन्दर्य से परिपूर्ण | बधाई स्वीकारें |

शशि पाधा

Jyotsana pradeep ने कहा…


बहुत प्यारे ..दिल की गहराई से लिखे महिया ... मन में उतर गए कृष्णा जी -

डूबें सो पाते हैं
दुर्लभ मोती खुद
तट पर ना आते हैं।

अति सुन्दर !!!
बहुत -बहुत बधाई आपको !

ज्योति-कलश ने कहा…

sundar maahiyaa ...durlabh motii ..anupam !!

haardik badhaaii diidii !!