सोमवार, 11 जून 2012

मोहक सागर


तुहिना रंजन
1
विधु-सी बाला सुन्दर ।
नैन उठाये जो 
उमड़े मोहक सागर ।
2
नाच हिया उठता तब ।
रूठे  मुखड़े   पर 
मुस्कानें  खिलती  जब ।
3
जीवन- मधुरिम सपने ।
जी लूँ जब तक ये 
प्राण न निकलें अपने ।
4
बाबुल कह दे अब तो-
‘धन  न  पराया थी 
दिल का टुकड़ा  थी वो ।’
5
जो हर पल हैं बहते-
झरने औ'   नदियाँ,
‘रुकना न कभी’ -कहते
-0-

10 टिप्‍पणियां:

kunwarji's ने कहा…

"बाबुल कह दे अब तो..."
संवेदनाओ को तरंगित या यूँ कहूँ कि झकझोरती पंक्तियाँ...

कुँवर जी,

बेनामी ने कहा…

जो हर पल हैं बहते-
झरने औ' नदियाँ,
‘रुकना न कभी’ -कहते
sundar... jeevan chalne ka hi to nam hai

उमेश महादोषी ने कहा…

अच्छे हैं ये माहिया!

sushila ने कहा…

सुंदर माहिया। पहला और चौथा बहुत पसंद आए। बधाई तुहिना जी!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल मंगलवार (12-062012) को चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!

बेनामी ने कहा…

सुन्दर अभिव्यक्ति
कृष्णा वर्मा

Dr.Bhawna Kunwar ने कहा…

khubsurat mahiya...

ऋता शेखर 'मधु' ने कहा…

बाबुल कह दे अब तो-
‘धन न पराया थी

दिल को छू गई...बहुत सुंदर...बधाई !!

प्रियंका गुप्ता ने कहा…

बाबुल कह दे अब तो-
‘धन न पराया थी
दिल का टुकड़ा थी वो ।’

एक बेटी के मन की पीड़ा सीधे मन तक पहुँची...बधाई...।

स्वाति ने कहा…

बाबुल कह दे अब तो-
‘धन न पराया थी
दिल का टुकड़ा थी वो ।’
बहुत हीं सुन्दर .....