रविवार, 10 जुलाई 2022

1051-सम्बन्धों की सुनामी

  रश्मि विभा त्रिपाठी

 

कोई अपना


भरोसे पर बना

छोड़के घर

नए सफर पर

निकलता है

करके रुख सख्त

विदा के वक्त 

मन दरकता है

पाँव के तले

जब सरकता है

एक टुकड़ा 

जमीन का, था खड़ा

उठाए सर

उम्मीद का महल

वहाँ केवल 

बचता खंडहर 

स्वप्न बेघर

सर पे छत नहीं

नींव से बही

आँसू की नदी खारी 

मन की आशा

भँवर बीच हारी

उठा तूफान

आफत में जी, जान

आई जो आज 

सम्बन्धों की सुनामी

स्नेह में क्या थी खामी?

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12 टिप्‍पणियां:

भीकम सिंह ने कहा…

वाह •••बहुत सुन्दर चोका, हार्दिक शुभकामनाएँ ।

Sonneteer Anima Das ने कहा…

वाह्ह्ह!!!वाह्ह्ह!! अप्रतिम सृजन... उत्कृष्ट सृजन.... 💐🌹🌹बधाई रश्मि जी 🌹🙏

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

बहुत सुन्दर। बधाई रश्मि जी।

शिवजी श्रीवास्तव ने कहा…

आई जो आज/सम्बंधो की सुनामी... सुंदर प्रतीक,प्रभावी चोका।बधाई रश्मि जी।

dr.surangma yadav ने कहा…

वाह-वाह!बहुत सुन्दर।

बेनामी ने कहा…

बहुत सुंदर चोका। बधाई रश्मि जी। सुदर्शन रत्नाकर

Krishna ने कहा…

बहुत ही सुंदर चोका...बधाई रश्मि जी।

बेनामी ने कहा…

हार्दिक आभार आप सभी आत्मीय जन का 🙏
हार्दिक आभार आदरणीय सम्पादक द्वय का

सादर

प्रीति अग्रवाल ने कहा…

बेहतरीन चोका! बधाई रश्मि जी!!

Gurjar Kapil Bainsla ने कहा…

बहुत ही सुंदर चोका। आपको हार्दिक शुभकामनाएँ।

Vibha Rashmi ने कहा…

बहुत मनभावन चोका रश्मि जी । आपको हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ ।

प्रियंका गुप्ता ने कहा…

बहुत अच्छा चोका है, रश्मि को बहुत बधाई