भीकम सिंह
नदी -8
फिर से मची
सिन्धु में खलबली
रुकी हुई-सी
एक नदी ज्यों चली
कुछेक लाश
लेकर अधजली
कोरोनाओं की
जब आँधी-सी चली
झूठ ने बोला
लेकर गंगा जल
नदी की कहाँ चली ।
नदी - 9
एक है व्यास
बेशुमार सपने
उसने देखे
बरफ़ की चादर
हटा-हटाके
धूप के पल सेंके
कुल्लू से मण्डी
ज्यों हवा बही ठंडी
झूमके दौड़ी
तट के पेड़ बड़े
तरसे खड़े-खड़े ।
नदी - 10
हुम्म-हुम्म-सा
बोलके कराहती
दम तोड़ती
तड़पती थी नदी
सिन्धु लपेटे
साँझ का झुरमुट
निहारता था
मिलने को आतुर
तट पर ही
हाथ-पाँव मारती
लहरें पुकारतीं ।
नदी - 11
नदी की पीड़ा
ज्यों घनीभूत हुई
हवा निश्चल
पेड़ों पे गुम हुई
छिटक गए
रास्ते के पाथर भी
डेल्टा पे लगे
सागर के पहरे
सहानुभूति
जताने को उमड़ी
तट पर लहरें ।
नदी- 12
रुग्ण हो गई
दो किनारों के बीच
सदी की नदी
बालू से पीठ लगा
फूँकती साँस
सुबह से उठती
दिशा-मैदान
कछारों में करती
पानी रखती
उगी दूब के पास
श्याम में जगी आस ।
11 टिप्पणियां:
वाह सर! आपके शब्दों का चयन लाजवाब है, उनको जिस अंदाज में पिरोते हो वह उत्कृष्ट श्रेणी का है।
आपको हार्दिक शुभकामनाएँ सर!
नदी पर आधारित सभी चोका बहुत सुंदर हैं। बधाई भीकम सिंह जी। सुदर्शन रत्नाकर
उत्कृष्ट चोका..हार्दिक बधाई आपको।
बहुत ही सुंदर चोका।
हार्दिक बधाई आदरणीय 🌷💐
"झूठ ने बोला
लेकर गंगा जल"
वाह वाह
"बेशुमार सपने
उसने देखे
बरफ़ की चादर
हटा-हटाके
धूप के पल सेंके"
लाजवाब !
उत्तम सृजन हेतु बधाई आदरणीय
उत्कृष्ट सृजन।हार्दिक बधाई सर
सुन्दर और भावपूर्ण चोका के लिए बधाई भीकम सिंह जी।
अत्यंत सुंदर एवं उत्कृष्ट भाव से परिपूर्ण सृजन 🌹🙏 बधाई सर 🙏🌹
मेरे चोका प्रकाशित करने के लिए सम्पादक द्वय का हार्दिक धन्यवाद और आप सभी का हार्दिक आभार ।
भीकम सिंह जी के नदी विषयक उत्कृष्ट चोका सृजन । आपको हार्दिक बधाई ।
मर्मस्पर्शी चोका के लिए भीकम जी को बहुत बधाई
एक टिप्पणी भेजें