रविवार, 3 जुलाई 2022

1049-चार चोका

भीकम सिंह 

 

नदी-1

 


दर्रों
, ढालो से 

छिपती-छिपाती-सी

एक नदिया 

गंदे नालों के फंदे 

सुलझाती-सी 

प्रेम में जब पड़ी

सुध-बुध खो 

सागर की साँसों का 

तूफान बनी 

लहर-लहर का

वो,अभिमान बनी 

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नदी-2

 

सुडौल देह

पहाड़ों से उतरी 

बलखाती-सी 

खजुराहों की याद 

हर मोड़ की

भंगिमा दिलाती थी

कुछ था, नदी !

जो बाँहें फैलाकर

तटों ने माना 

क्यों विदेह हो गई

दया की पात्र नदी 

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नदी -3

 

बेजान नदी !

तेरे लिए आखिर 

सागर क्यों है 

इतना सपनीला 

जिसके लिए 

पाँव-पाँव चलके 

जख़्मी हो जाना 

पसन्द है तुझको 

ताक लगाए 

गिद्ध-से नालों का भी

खौफ नहीं तुझको 

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नदी-4

 

डेल्टा के तले 

दीर्घ नि:श्वास भरा 

नदी ने जब

ठोकर - सी खाकर


गिरीं लहरें
 

सभी किनारों पर 

मोती छिटका 

सीपियाँ बिखरी ज्यों 

गुस्से में सिन्धु 

आलोड़ित हुआ त्यों 

और विलोड़ित भी 

 

 डेल्टा  - जब नदी सागर से मरणासन्न स्थिति में मिलती है तो डेल्टा स्थलाकृति का निर्माण करती है ।

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12 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

बहुत ही उत्कृष्ट चोका।
हार्दिक बधाई आदरणीय 🌷💐

शिवजी श्रीवास्तव ने कहा…

बहुत सुंदर,प्रभावी चोका।बधाई डॉ. भीकम सिंह जी

Gurjar Kapil Bainsla ने कहा…

सर भूगोल का साहित्य में अच्छा प्रयोग कर रहे हो। बहुत ही उत्कृष्ट चोका, हार्दिक बधाई।

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

बहुत सुन्दर चोका। बधाई भीकम सिंह जी।

Sonneteer Anima Das ने कहा…

आहा!!! अति सुंदर रम्य रचना 🌹🙏

प्रीति अग्रवाल ने कहा…

अति सुंदर!विशेषतः बेजान नदी...।

dr.surangma yadav ने कहा…

प्रभावपूर्ण चोका सृजन।बहुत-बहुत बधाई सर!

बेनामी ने कहा…

बहुत सुंदर। उत्कृष्ट सृजन। बधाई। सुदर्शन रत्नाकर

भीकम सिंह ने कहा…

मेरे चोका प्रकाशित करने के लिए सम्पादक द्वय का हार्दिक धन्यवाद और आप सभी की स्नेहमयी और आशीर्वाद स्वरूप दी गयी टिप्पणियों के लिए हार्दिक आभार ।

Krishna ने कहा…

अति सुंदर सृजन...बहुत-बहुत बधाई।

Vibha Rashmi ने कहा…

नदी पर अतिसुंदर हाइकु । हार्दिक बधाई भीकम सिंह जी ।

प्रियंका गुप्ता ने कहा…

डेल्टा का प्रयोग चोका में बहुत सुन्दरता से हुआ है | बेहतरीन चोका के लिए आपको बहुत बधाई