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गुरुवार, 29 मार्च 2012

रोशनी के रथ में


प्रगीत कुँअर
1
ऊँचा भवन
गिरा पल भर में
यूँ एकदम
क्या करें नींव की ही
गहराई जब कम ।
2
भागमभाग
रात औ’ दिन बस
एक ही राग
सपनों की दुनिया
जिसमें लगी आग ।

3
उसके द्वारे 
देते रहे दस्तक
इंतज़ार में
गिरे सूखे पेड़ -से
आया न अब तक ।
4
देखो चली है
ठंडी हवा छू मुझे
उनकी गली
पूरे उपवन में
मची है ख़लबली ।
5
जो आए कभी
राह में पत्थर तो
पूजा उनको
समझ भगवान
हुई राह आसान ।
6
थी हसरत-
दे दे दुनिया साथ
दूर तल़क
मंज़िल खोई जाना-
भरोसा था गलत ।
7
तनहाई में
आ जाते हैं मिलने
उसके ख्याल
पूछते हैं मुझसे
अनबूझे सवाल ।
8
ढूँढना होगा
अपने ही भीतर
छिपा वो समाँ
जो करे तरोताज़ा
अपना सारा जहाँ
9
चाहे लगाओ
तन- मन व धन
मगर सदा
दुनिया ये निर्दय
देती केवल जख़्म
10
अनगिनत
तारों के बीच सजा
बैठा है चाँद
अँधेरे की बाधाएँ ।
चाँदनी आए फाँद ।
11
आशाएँ बैठ
रोशनी के रथ में
जाती जहाँ से
मिटता निराशा का
अँधियारा वहाँ से ।
-0-

मंगलवार, 29 नवंबर 2011

आस लगाए बैठे


आस लगाए बैठे(ताँका)
प्रगीत कुँअर
1
बूँद बन के
अंखियों की झील से
आँसू छलके
बहा कर ले गये
ख़्वाब थे जो कल के
2
तेज रफ़्तार
ज़िंदगानी की रेल
बिना रुके ही
पटरियों पे दौड़े
मंजिल पीछे छोड़े
3
भरे थे रंग
ज़िंदगी के चित्र में
खुशी के संग
बही आँसू की धार
हुए सब बेरंग
4
शिकायत है
खुद से बस यही
जीवन भर
बात जो दिल बोला
बस वही क्यों सुनी ?
5
कहे बिना ही
हो जाती कुछ बातें
खुद ही बयाँ
चाहे हो कितने भी
फ़ासले दरमियां
6
देखे सपने
उड़ते परिंदों के
जागे जो हम
पाया फिर खुद को
रेंगते जमीन पे
7
मेहनत का
मिलना था जो फल
आज़ न मिला
आस लगाए बैठे
शायद मिले कल
8
हर तरफ़
फिरते हैं कितने
रुखे चेहरे
दिलो-दिमाग तक
देते जख़्म गहरे
9
अंदाज़ा न था
डूबने से पहले
गहराई का
तैर के ऊपर ही
चलता कैसे पता?
10
बेड़ियाँ डाले
रिश्तों की पैरों में
पड़े हैं छाले
प्यार का मरहम
करेगा दर्द कम
-0-