डॉ०रमा द्विवेदी
1
अजब भाषा
बाँच न पाए कोई
झीनी चुनरी
देख सके न आँख
रहें प्रेम में खोई
2
पानी-ही पानी
प्यासा समंदर क्यों
ढूँढ़े नदी को
नदी ढूँढ़ती उसे
अजीब रिश्ता यह ?
3
चुप्पी जो खिंची
फ़ासला बढ़ गया
बेवज़ह ही
रिश्ते को डस गया
ग्रहण लग गया ।
4
नग्न शज़र
रोता है जार-जार
तलाशता है
हरित परिधान
कब होगा विहान ?
5
फिजाएँ गाएँ
हवा गुनगुनाए
संध्या की बेला
पर्वत हो अकेला
बंजारा गाता जाए ।
6
हरे-भरे जो
कल पीले होकर
मिट्टी में मिल
ठूँठ रह जाएँगे
नवांकुर आएँगे ।
नवांकुर आएँगे ।
7
बूँदें बरसीं
टप-टप टपकीं
अखियाँ रोईं
सुधियाँ उड़ आईं
हर्षित-मन भाईं ।
8
रिश्ते में धोखा
ताउम्र वनवास
मन का त्रास
दिल की चाहत का
ढूँढती समाधान ।
9
सात फेरे भी
रिश्ते बचा न पाएँ
व्यर्थ वचन-
प्रणय -अनुबंध
झूठे सब सम्बन्ध ।
10
खो गया सब
सभ्यता की दौड़ में
सुख-सुकून
दौड़ रहे फिर भी
दौड़ रहे फिर भी
चौधियाई आँखों से।
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6 टिप्पणियां:
ठीक लगा…
sabhi bahut sunder hai samudra aur nadi ki baat ne to man moh liya
badhai
rachana
सभी ताँका बहुत सुन्दर हैं...बहुत सारी परिस्थितियों पर प्रकाश डाला है,
रमा दी को बधाई|
आप सबका स्नेह मिला ... बहुत-बहुत हार्दिक आभार | विशेष कर हिमांशु जी व हरदीप जी को दिल से शुक्रिया कहना चाहती हूँ जिनके प्रयास से ये ताँका यहाँ पर हैं पुन: आभारी हूँ इस आत्मीयता के लिए ....सादर...
डा. रमा द्विवेदी
interesting ...
interesting post..
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