मंगलवार, 15 नवंबर 2011

फिर आएँ बहारें


 प्रो. दविन्द्र कौर सिद्धू 
1
झरते पत्ते 
टूटा जो आशियाना 
छोड़ न आशा 
फिर आएँ बहारें
घोंसला फिर बने 
2
फसल कटी 
कर्ज उतारा गया 
हाथ हैं खाली
गोरी गूँथ रही है 
दुःख भूख का आटा
3
पीपल -पींग
चढ़ी है आसमान 
तीजो का चाव 
सावन हरषाया 
ओ माही लेने तो आ 
4
घोड़ी -सिंगार
झट चला माहिया
गोरी के चाव 
सावन की बूँदों ने 
उतारा अनुताप 
5 .
ज़हर बना 
मर-मर बहती 
नदी पंजाबी 
मीठा पानी यहाँ का 
ज्यों  गुज़री कहानी 
6
सूनी मूरत 
चुपके से दरिया 
भीतर बहे
देख यूँ बहकर 
ये तूफ़ान से  मिले 
चित्रांकन:अक्षय अमेरिया
7
माँ -बाप ‘सीस’
दो लफ़्ज़ हैं  बीमार 
बाप लाचार
बैठा वृद्धाश्रम में-
बेटे का इंतज़ार
8 .
शब्द ढूँढते
परवाज़ गीत की 
नभ के पार
कोयल कूक रही 
साज़ भी व गान भी 
9
मीठी कोयल
कूक है लाजवाब 
सँभल जा तू 
वो गीत लिखा नहीं
जो तेरी परवाज़
10
चल दी गाड़ी
स्टेशन हुआ सूना
उदासी छाई
पीछे छोड़ आई है 
आँसू  भरी अँखियाँ 
11
चाँदी -रंग -सा 
चाँद का एक हर्फ़ 
काव्य पिरोया
रात भी  शरमाई 
यूँ  सितारों के संग 
-0-

5 टिप्‍पणियां:

डॉ. दिलबागसिंह विर्क ने कहा…

पंजाब की खुशबू लिए हुए हैं सभी तांका
सुंदर लेखन के लिए बधाई

satishrajpushkarana ने कहा…

चल दी गाड़ी
स्टेशन हुआ सूना
उदासी छाई
पीछे छोड़ आई है
आँसू भरी अँखियाँ -इस ताँका में विछोह की गहरी अनुभूति है और वैसी ही अनुवर्ती भाषा ।प्रो साहिबा को बहुत बधाई !

डॉ. दिलबागसिंह विर्क ने कहा…

आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
कृपया पधारें
चर्चा मंच-701:चर्चाकार-दिलबाग विर्क

Gyan Darpan ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति

Gyan Darpan
Matrimonial Site

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा…

“सुन्दर ताका
भिन्न भिन्न विषय
बढ़िया गुंथा
भावों में बिखरते
बधाईयों के भाव...”
सादर बधाई