प्रो. दविन्द्र कौर सिद्धू
1
टूटा जो आशियाना
छोड़ न आशा
घोंसला फिर बने
2
कर्ज उतारा गया
हाथ हैं खाली
गोरी गूँथ रही है
दुःख भूख का आटा
3
चढ़ी है आसमान
तीजो का चाव
सावन हरषाया
ओ माही लेने तो आ
घोड़ी -सिंगार
झट चला माहिया
गोरी के चाव
सावन की बूँदों ने
उतारा अनुताप
5 .
मर-मर बहती
नदी पंजाबी
मीठा पानी यहाँ का
ज्यों गुज़री कहानी
6
सूनी मूरत
चुपके से दरिया
भीतर बहे
देख यूँ बहकर
ये तूफ़ान से मिले
माँ -बाप ‘सीस’
दो लफ़्ज़ हैं बीमार
बाप लाचार
बैठा वृद्धाश्रम में-
बेटे का इंतज़ार
8 .
परवाज़ गीत की
नभ के पार
कोयल कूक रही
साज़ भी व गान भी
9
मीठी कोयल
कूक है लाजवाब
सँभल जा तू
वो गीत लिखा नहीं
जो तेरी परवाज़
10
चल दी गाड़ी
उदासी छाई
पीछे छोड़ आई है
आँसू भरी अँखियाँ
11
चाँदी -रंग -सा
चाँद का एक हर्फ़
काव्य पिरोया
रात भी शरमाई
यूँ सितारों के संग
-0-
5 टिप्पणियां:
पंजाब की खुशबू लिए हुए हैं सभी तांका
सुंदर लेखन के लिए बधाई
चल दी गाड़ी
स्टेशन हुआ सूना
उदासी छाई
पीछे छोड़ आई है
आँसू भरी अँखियाँ -इस ताँका में विछोह की गहरी अनुभूति है और वैसी ही अनुवर्ती भाषा ।प्रो साहिबा को बहुत बधाई !
आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
कृपया पधारें
चर्चा मंच-701:चर्चाकार-दिलबाग विर्क
सुन्दर प्रस्तुति
Gyan Darpan
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“सुन्दर ताका
भिन्न भिन्न विषय
बढ़िया गुंथा
भावों में बिखरते
बधाईयों के भाव...”
सादर बधाई
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