प्रियंका गुप्ता
1
वो हरा पेड़
डोलता तो कहता
मैं दोस्त तेरा
काटा मुझे जो तूने
लगा पीठ में छुरा ।
2
पोपला मुँह
दादी बैठी उदास
चूल्हे के पास
लड्डू-मठ्ठी बाँधती
पोता ले जाए साथ ।
3
हँसती बेटी
आँगन महकाती
बड़ी हो गई
परदेसी हो गई
बाबुल राह तके ।
4
बड़ी बहन
सँभालती छोटी को
बड़ी हो गई
असमय भूली वो
बचपन अपना ।
5
नीम की छाँव
गर्मी की दोपहरी
गुट्टी खेलना
भाई-बहनों संग
जब अम्माँ सो जाती।
6
बिन बात के
लड़ना-झगड़ना
चिल्ला के रोना
फिर माँ की धौल खा
इकठ्ठे बैठ रोना ।
7
भूली न जाएँ
बचपन की बातें
दोस्तों के संग
लड़ना-झगड़ना
फिर एक हो जाना ।
8
बेटी का मन
पराया नहीं होता
न तो पहले,
न शादी के बाद ही
कैसे कहे पराया ?
9
चिड़िया बन
आँगन में फुदके
खिलखिलाए
बहे ठण्डी हवा-सी
दूर देश को जाए ।
10
जब भी दर्द
हद से गुजरता
और न सहे
मन चीत्कार करे
कोई सुने, न सुने ।
11
ठोकर लगे
अपनों की बेरुखी
मन को डसे
फिर भी चुप सहे
घास बन के जिए ।
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प्रियंका गुप्ता
11 टिप्पणियां:
प्रियंका जी के सभी ताँका भावपूर्ण एवं मर्मस्पर्शी हैं ...बहुत-बहुत बधाई....
डा. रमा द्विवेदी
प्रियंका जी के तांके इसलिए भी मन को छूते हैं कि इनमें हमारे आसपास के जीवन की महक भी मौजूद होती है। कई तांका तो बहुत ही अच्छे हैं। बधाई !
आदरणीय काम्बोज जी और हरदीप जी की आभारी हूँ कि उन्होंने मेरे तांकों को त्रिवेणी मे स्थान दिया ।
सम्मानीय रमा जी और सुभाष जी, आप दोनो की उत्साहवर्द्धक टिप्पणियों के लिए बहुत शुक्रिया...।
प्रियंका
सभी तांका भावपूर्ण हैं. हिंदी कविता में आप तांका को महत्वपूर्ण स्थान पर स्थापित तो कर ही रहे हैं, हिन्दी कविता की विविधता में भी काफी-कुछ जोड़ रहे हैं.
यह सबसे अच्छी लगी...
ठोकर लगे
अपनों की बेरुखी
मन को डसे
फिर भी चुप सहे
घास बन के जिए ।
उमेश जी , यह सब आप जैसे सुधीजनों के सहयोग से ही हो पा रहा है ।आप भी 'अविराम' के माध्यम से इस कार्य को और मज़बूती प्रदान कर रहे हैं
चिड़िया बन
आँगन में फुदके
खिलखिलाए
बहे ठण्डी हवा-सी
दूर देश को जाए ।
Bahut payare taanka hain bahut2 badhai ye bahut achchha hai...
चिड़िया बन
आँगन में फुदके
खिलखिलाए
बहे ठण्डी हवा-सी
दूर देश को जाए ।
जब भी दर्द
हद से गुजरता
और न सहे
मन चीत्कार करे
कोई सुने, न सुने ।
सभी ताँका भावपूर्ण हैं...बधाई|
बिन बात के
लड़ना-झगड़ना
चिल्ला के रोना
फिर माँ की धौल खा
इकठ्ठे बैठ रोना ।
भूली न जाएँ
बचपन की बातें
दोस्तों के संग
लड़ना-झगड़ना
फिर एक हो जाना ।
बहुत ख़ूबसूरत, भावपूर्ण और मर्मस्पर्शी तांका! बढ़िया लगा!
पोपला मुँह
दादी बैठी उदास
चूल्हे के पास
लड्डू-मठ्ठी बाँधती
पोता ले जाए साथ।
बहुत सुन्दर ताँका हैं...बधाई!
उत्साहवर्द्धक टिप्पणियों के लिए बहुत शुक्रिया...।
प्रियंका
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