मुमताज़ टी. एच.खान
1
रिश्ते तो आज
बन गये हैं ख्वाब
बन्द आँखों में
होते हैं वो अपने
खोलने पे सपने
छुआ था मन
किसी ने सपने में
खुली जो आँख
रह गयी वो छाप
नेह भरे स्पर्श की
3
नेह तेरा है-
नील गगन जैसा,
नहीं है छोर
न तोड़ सके कोई
बाँधी धरा से डोर
भावुक मन
रोके नहीं रुकता
तोड़ कर वो
बन्धनों को भी सारे
बहने ही लगता
5
मिला हमको
ऐसा अपनापन
दुआ रब से-
रहे साथ हमारे
हर एक जनम
6
कड़ी धूप में
खड़े जब अकेले
शीतल छाया
पड़ी जो गगन से
देखा- थी माँ की छाया
नेह -पोटली
मिली जब भाग्य से
खुलने पर
बिखरी जीवन में
समेटे न सिमटे
8
बन्धन खुला
रिश्तों का है जब से
टूटा है मन
बिखर गया अब
जैसे टूटा दर्पण
-0-
1 टिप्पणी:
मुमताज जी आपके सभी तांका बहुत संवेदनशीलता लिये हुए हैं । पर ये दोनों तो माधुर्य से भरे है-7
नेह -पोटली
मिली जब भाग्य से
खुलने पर
बिखरी जीवन में
समेटे न सिमटे
8
बन्धन खुला
रिश्तों का है जब से
टूटा है मन
बिखर गया अब
जैसे टूटा दर्पण
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