किताब चाहे बन्द हो या खुली, हमें बहुत कुछ कह जाती है । लेकिन हर एक के लिए ये अलग-अलग मायने रखती है ।
कुछ दिन पहले मुमताज जी ने बन्द किताब को कुछ ऐसे पढ़ा ......
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फिर रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' जी ने बन्द और खुली किताब को अपने ही अंदाज़ में पढ़कर हमें सुनाया .......
बन्द क़िताब -'हिमांशु'
1
बन्द क़िताब
कभी खोलो तो देखो
पाओगे तुम
नेह भरे झरने
सूरज की किरने ।
2
बन्द क़िताब
जब-जब भी खोली
पता ये चला-
पाया है बेहिसाब
चुकाया न कुछ भी ।
3
बन्द क़िताब
जो खुली अचानक
छलकी आँखें
हर पन्ना समेटे
सिर्फ़ तेरी कहानी ।
4
बन्द क़िताब
पन्ने जब पलटे-
शिकवे भरे
फ़िक्र रहा लापता
कोई जिये या मरे ।
5
बन्द क़िताब
बरसों बाद खुली
खुशबू उड़ी
हर शब्द से तेरी
मधुर छुअन की ।
6 .
बन्द किताब
कभी खोल जो पाते
पता चलता-
तुम रहे हमारे
जीवन से भी प्यारे
-0-
खुली किताब- हिमांशु
1
खुली किताब
थी ज़िन्दगी तुम्हारी
बाँच न सके
आज बाँचा तो जाना
अनपढ़ थे हम ।
2
खुली किताब
झुकी तेरी पलकें
नैन कोर से
डब-डब करके
गर्म आँसू छलके ।
3
खुली किताब
ये बिखरी अलकें
आवारा घूमे
ज्यों दल बादल के
ज्यों खूशबू मलके ।
4
खुली किताब
तेरा चेहरा लगे
पन्ना-पन्ना मैं
जब पढ़ता जाऊँ
सिर्फ़ तुझको पाऊँ ।
5
खुली किताब
रहा दिल तुम्हारा
पढ़ न पाए
तो समझ न पाए
सदियों पछताए
6
खुली किताब
नज़र आया वही
लाल गुलाब
गले लग तुमने
दिया पहली बार ।
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सभी ये पढ़ रहें हो तो मेरा मन भी कुछ कहने को ललचाया । बन्द और खुली किताब मुझे कुछ यूँ बतियाती लगी ......
बन्द किताब ( हरदीप )
1 .
बन्द किताब
लगे जो बन्द पड़ी
खोलता इसे
बेचैन मन मेरा
रोज़ ख्यालों में पढ़ी
2
बन्द किताब
कोई राज़ छुपाए
सारे जहाँ से
राज़ में जो है छुपा
वह दिल में बसा
3 .
खोलने से डरता
ये मन मेरा
अपने ही घर ने
कैदी मुझे बनाया
4 .
बन्द किताब
बनी एक सवाल
शिकायत भी
कोई ढूँढ़ न पाया
सही जवाब अभी
5 .
बन्द किताब
ज्यों ला -इलाज मर्ज़
जिन्दगी कर्ज़
यूँ ही बढ़ता गया
ज्यों हमने की दवा !
खुली - किताब ( हरदीप )
1 .
खुली किताब
शब्द बने आवाज़
इशारे कभी
उस पल के जैसे
जिन्दगी फूल बनी
2 .
खुली किताब
नए हैं अनुभव
नए चेहरे
बेख़ौफ़ है ज़िन्दगी
जैसे बहे चिनाब
3 .
खुली किताब
समझ नहीं पाई
क्यों ऐसे हुआ
हँसता दिल मेरा
आँखे भर क्यों रोया
4.
खुली किताब
तेरी यह जिन्दगी
ढूँढ़ती रही
सवालों के जवाब
तूने किए ही नहीं
5.
खुली किताब
सुनहरी धूप- सी
जिन्दगी मेरी
बिन दीवारों बना
अपना आशियाना
--डॉ. हरदीप कौर सन्धु
19 टिप्पणियां:
ज़िन्दगी में अनुभवों की किताब हमेशा खुली रहे ..
और कडवी यादों की किताब बंद...
बहुत अच्छा संकलन..
kalamdaan.blogspot.in
बहुत सुंदर विषय है बंद और खुली किताब .....जिंदगी के हर पहलू को दर्शाती .....सारे तांके बहुत अर्थपूर्ण है.....बधाई
बन्द और खुली किताब पर इतने सारगर्भित और सुन्दर तांका भी लिखे जा सकते हैं, सोचा न था, हिमांशु जी और हरदीप जी के ये तांका सहेज कर रखने वाले हैं।
किताब जो बंद किये थी
अपनी अलकों में
ढेर से अहसास
आप सब सुधि जनों ने
उन्हें खोल कर रख दिया
किताब के दोनों खूबसूरत पहलु आपने दिखा दिए हरदीप जी और हिमांसु जी आपने ....
कुछ यादों के पन्ने बंद किताबों में रहे तो कभी कभी बड़े सुकून देते हैं खास कर तन्हाई के वक़्त ....
तुम होते तो ये होता ....तुम होते तो वो होता .....:))
`किताब` के दोनों पहलुओं पर आधारित विविधता लिए हुए बहुत ही सुन्दर रचनाएँ .आ० काम्बोज जी एवं हरदीप कौर जी . .
kitab khuli ho ya band kahaani hum sabki keh rahi hai , kya baat hai waah!
बंद और खुली किताब पर खूबसूरत तांका ... मन की सारी भावनाएं समा गयी हैं ॥
shishya kee safalta guru ka uplabdhi hai, aur ye yahaan pramaanit bhi hua. khuli kitaab aur band kitaab kaise kya kya kah jaati har taanka ne kah diyaa...
खुली किताब
थी ज़िन्दगी तुम्हारी
बाँच न सके
आज बाँचा तो जाना
अनपढ़ थे हम ।
arthpurn taanka ke liye Mumtaaz, Hardeep ji aur Kamboj bhai ko badhai.
मुमताज जी ने अपने ताँका में पूरे अतीत को ही समेट लिया है...खुशगवार यादें और गम के पलों को भी|
इनके आधार पर रचे गए सर और सन्धु जी के ताँका लाजवाब हैं...सबको बधाई|
आदरणीय भाईसाहब व् हरदीप जी मेरा बहुत दिनों बाद मेरा साहित्य जीवन में आना हुआ है बहुत अच्छा विषय है और हर एक तांका एक से बढ़कर एक है बधाई.................
सादर
अमिता कौंडल
इतना सुन्दर विषय चुनने के लिए मुमताज़ जी और उसमें विविध भावों के रंग भरने के लिए हिमांशु जी एवं हरदीप जी को बहुत बधाई। प्रत्येक ताँका किसी ना किसी दिल की बात कह रहा है लाजवाब।
बंद हो या हो खुली किताब ...किताब तो होती है ...सबसे लाजवाब ... अनूठे विषय चयन और निराले तांका लेखन के लिए सभी तांकाकारों को साधुवाद ...
kya sunder jugalbandi hai kamal band kitab aur khuli kitab ka kamal rishta hai bhavnaon se aapdono ne us ko shabdon me bahut sunderta se dhala hai
badhai
rachana
किताब - बंद और खुली ... बेहद सुन्दर तरीके से सजोयी है... और एक से बढ़ कर एक तांका मुमताज जी से, रामेश्वर जी और हरकीरत जी ने बेहद सुन्दर रचनाओं की प्रस्तुति की है... लाजवाब ! बधाई आपको !
नूतन
आप सभी के स्नेह -पगी प्रेरक टिप्पणियों के लिए बहुत -बहुत आभार !
डॉ हरदीप कौर सन्धु और रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
Vah! Kya bat hai.Himansu ji ke tankao ka .
बहुत सुंदर... ऐसी जुगल बंदी लेखन में आप दोनों की ही विशिष्ट खोज है... उत्कृष्ट लेखन के लिए बधाई
सादर
मंजु
waah bahut sundar sabhi ek se badhkar ek aaj punah padhkar aanand aa gaya , aur aaj phir se khuli kitab aur band kitab ka naya roop najro me samaya ......punah hardik badhai
shashi
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