खिलेगी ये जिन्दगी
दिलबाग विर्क
1
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छाया: रोहित काम्बोज |
स्थायी नहीं है
दुःख का पतझड़
जब पड़ेंगी
आशाओं की फुहारें
खिलेगी ये जिन्दगी
2
चलता रहे
क्रम जीत हार का
आशा रखना
दिल पर न लेना
कभी किसी हार को
3
निराशा विष
आशा जीवनामृत
दोनों विरोधी
चुनाव है तुम्हारा
चुन लेना जो चाहो
10 टिप्पणियां:
सुन्दर मुक्तक..
kalamdaan.blogspot.com
बहुत सुन्दर भाव संक्षेप में |
आशा
बहुत आभार ॠतु जी । ये तांका हैं-5+7+5+7+7=31 वर्ण के अनुसार ।
मुझे कविताओं की technical terms के बारे में कम ही ज्ञान है ..
क्षमा चाहूंगी ..
kalamdaan.blogspot.com
ॠतु जी कोई बात नहीं । असली बात तो भाव की है । आपने जो भाव की सराहना की उसके लिए आपका बहुत आभार !
बहुत सुंदर और सार्थक आभिव्यक्ति...
त्रिवेणी के संपादक मंडल और इस पोस्ट पर आने वाले सभी साथियों का बहुत-बहुत आभार
sunder post...ruchikar abhiy=vayti/
bahut umda triveni.
बहुत बढ़िया प्रस्तुति!
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