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सोमवार, 27 अगस्त 2012

ओ काले मेघा -चोका ( वर्षा ॠतु)

5-बेरंग सावन
 -मंजु गुप्ता

वर्षा की झड़ी 
करती  मन  खिन्न 
गिरी दामिनी 
मेरे मनोभावों पे
करे  प्रहार 
 म्लान लगे प्रकृति 
ताना दे फूल 
शापित लगे जग 
शूल चुभाते
भूला न पाती छवि 
पी मिलन की 
हे मेघ ! ले जा 
विरह का संदेशा 
पिया के पास 
सतरंगी सावन 
लगता  है बेरंग  
-0-

6- पगलाया बारिश का मौसम
- रेनु चन्द्रा
पानी बरसा
बरसता ही रहा
बरसात ने
फिर कहर  ढाया
जलमग्न हो
डूबा शहर सारा ,
सड़कें बनीं
बहती हुई धारा ।
।छतें हैं टूटीं
बरबाद हैं घर
जन-जीवन
गया सब बिखर
मुझे यूँ लगा
पगलाया शायद
बारिश का मौसम।
-0-
7-ओ काले मेघा 
-दिलबाग विर्क 
प्यासी धरती
तड़पे दिन रात
ओ काले मेघा !
सुनो जरा पुकार
छा जाओ तुम
ढक लो आसमान 
चाहते सभी
ठंडी-ठंडी फुहार 
हो हरियाली
पात-पात  मुस्काए
सूनी धरा का
कर देना उद्धार 
तपन मिटे
मादकता छा जाए 
अंग- अंग पे
चढ़े नया खुमार 
ओ काले मेघा
बरसो छ्माछ्म 
देना ये उपहार
-0-
(प्रस्तुति-रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’)

गुरुवार, 5 अप्रैल 2012

लिखी न जाए


-दिलबाग विर्क 


मेरे देश में
हैं बहुत  अजूबे
करें नमन
लोग पग छूकर 
               धरती यहाँ 
               कहलाती माता
               गुरु का दर्जा
               ईश्वर से ऊपर ।
मान देवता 
पूजते प्रकृति को
कर्म जीवन  
फल देता ईश्वर 
               चाहें दिल से,
               करें रिश्तों की क़द्र
               छोटों से प्यार
               दें बड़ों को आदर 
नहीं बनाते 
पत्थर के मकान
लोग यहाँ पे
बनाते सदा घर 
               न डरें कभी 
                कभी घबराएँ 
               आपदा से भी
               मिलें मुस्कराकर 
लगते मेले
लोग नाचें ख़ुशी में
भाँति-भाँति के
त्योहार यहाँ पर 
               दुःख बटाएँ
               अक्सर दूसरों का
               रहते लोग
               मदद को आतुर 
क्या बताऊँ मैं
विशेषता इसकी
लिखी न जाए
कागज के ऊपर 
                रंग अनेक
                भाषा-बोली अनेक
                फिर भी एक
               चकित विश्व भर
जब डाले नज़र 
                   -0-

बुधवार, 1 फ़रवरी 2012

खिलेगी ये जिन्दगी


दिलबाग विर्क
 1
छाया: रोहित काम्बोज
  स्थायी नहीं है
  दुःख का पतझड़
   जब पड़ेंगी
    आशाओं की फुहारें
      खिलेगी ये जिन्दगी
      2
चलता रहे
  क्रम जीत हार का
 आशा रखना
दिल पर न लेना
कभी किसी हार को
      3
निराशा विष
आशा जीवनामृत
       दोनों विरोधी
       चुनाव है तुम्हारा
       चुन लेना जो चाहो 

शनिवार, 12 नवंबर 2011

मोह के पाश


मोह के पाश (ताँका) 
1
मोह के पाश 
जितने मजबूत 
दुःख उतना, 
जानता सब कुछ 
न मानता मानव।
2
पर निकले 
फुर्र से उड़ चले 
बच्चे सबके, 
चिड़िया तो हँस दी, 
खूब रोया आदमी।
3
न आशा बाँधी
न कोई स्वप्न देखा 
ओ री चिड़िया !
जाने दिया बच्चों को 
धन्य तेरा दर्शन!
-0-
दिलबाग विर्क