1- मुमताज टीएच खान
मन को फाँस
तड़पाया जीवन
तीखी यादों ने
छटपटाए ऐसे
जल बिन मीन जैसे ।
2
मझधार में
फँसे जब भी नाव
न पतवार
न हो खेवनहार
प्रभु लगाए पार ।
-0-
2-संगीता स्वरूप
1
घना सन्नाटा
मौन की चादर में
दोनों लिपटे
न तुम कुछ बोले
न मैं ही कुछ बोली ।
2
लब खुलते
गिरह ढीली होती
मन मिलते
कुछ मोती झरते
कुछ दंश हरते ।
3
गहन घन
छँट जाते पल में ,
उजली रेखा
भर देती मन में
अनुपम उल्लास ।
-0-
11 टिप्पणियां:
मझधार में
फँसे जब भी नाव
न पतवार
न हो खेवनहार
प्रभु लगाए पार ।
बहुत सुंदर भाव हैं मुमताज़ जी हार्दिक बधाई.....
घना सन्नाटा
मौन की चादर में
दोनों लिपटे
न तुम कुछ बोले
न मैं ही कुछ बोली ।
संगीत जी क्या खूब लिखा है........सच में मौन सन्नाटा बहुत भयंकर होता है. सुंदर भाव,
सादर,
अमिता कौंडल
वाह वाह लाजबाब ..सभी
संगीता जी गज़ब के भाव हैं.
waaaaaaaaaaaaah kya baat hai.
maja aa gaya padh kar.prem-jiwan ka ganit samjha diya.bahut sunder
बहुत सुन्दर भावपूर्ण ताँका मुमताज जी संगीता जी बहुत बधाई।
मझधार में
फँसे जब भी नाव
न पतवार
न हो खेवनहार
प्रभु लगाए पार ।......बहुत सुन्दर भाव ..!..और ...मौन से मुखर होती उल्लास की किरन तक सभी तांका बहुत सुन्दर हैं ...बधाई...!
गहन घन
छँट जाते पल में ,
उजली रेखा
भर देती मन में
अनुपम उल्लास ।... आपकी कलम की जय
बहुत सुन्दर ताँका रचे हैं आप दोनों ने ! मुमताज़ जी के शब्दों में जादू है तो आपके मोती से शब्दों में सम्मोहन ! इन अद्भुत रचनाओं के लिये आप दोनों को बहुत-बहुत बधाई !
क्या खूब ताँका रचे हैं ………भावों का सुन्दर संगम हुआ है। अद्भुत संयोजन्।
"लब खुलते
गिरह ढीली होती
मन मिलते
कुछ मोती झरते
कुछ दंश हरते ।"
वाह ! अनुपम संगीता जी !
"मझधार में
फँसे जब भी नाव
न पतवार
न हो खेवनहार
प्रभु लगाए पार ।"
सुंदर भावाभिव्यक्ति मुमताज़ जी ! बधाई !
सभी तांका बहुत सुन्दर हैं ...आप दोनों को बहुत बधाई..|
बहुत सुन्दर ताँका . संगीता जी और खान साहब को बधाई.
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