1-डॉ अमिता कौंडल
1
बिखरा मन
अंधकार है छाया
तुम जो रूठे
आस भी टूटी अब
गम भी गहराया ।
2
जो थाम लेते
जो थाम लेते
तो न ये बिखरते,
प्यार के मोती
खुशियाँ भी बसतीं
आँगन भी खिलता ।
3
कब समझे
कब समझे
तुम प्यार की भाषा ?
बस मैं बोली,
तुम न सुन पाए
फिर जी भर रोई ।
-0-
12 टिप्पणियां:
बिखरते मन को कैसे खुशियाँ मिल जातीं ...इन भावों को बहुत खूबसूरती से उकेरा है ... सुंदर प्रस्तुति
सुन्दर प्रस्तुति ।।
सुन्दर तान्के
सभी तांका बहुत अच्छे लगे...
जो थाम लेते
तो न ये बिखरते,
प्यार के मोती
खुशियाँ भी बसतीं
आँगन भी खिलता ।
बहुत सुन्दर भाव।
कृष्णा वर्मा
3
कभी कभी बिखरी ज़िन्दगी को समेटना मुश्किल हो जाता है .यदि कोई अपना हाथ बढ़ा दे तो इन बिखरे मोतियों की माला बन सकती है ....................
सुंदर प्रस्तुति अमिता जी
रचना
प्यारे साथ की सुंदर अभिव्यक्ति
बधाई
रचना
बहुत खूब...सुंदर प्रस्तुति...
सुंदर भावाभिव्यक्ति ! बधाई डॉ अमिता कौंडल जी। यह तांका विशेष रूप से पसंद आया -
जो थाम लेते
तो न ये बिखरते,
प्यार के मोती
खुशियाँ भी बसतीं
आँगन भी खिलता ।
आप सभी को मेरी रचना पसनद आयी इसके लिए सभी का हार्दिक धन्यवाद. आशा है आप सभी का स्नेह यूँही मिलता रहेगा.
सादर,
अमिता कौंडल
khubsurat taanka...bahut2 badhai
बहुत सुन्दर भाव, बधाई.
एक टिप्पणी भेजें