नदी में चाँद ( ताँका )
डॉ अनीता कपूर
1
नदी में चाँद
तैरता था रहता
पी लिया घूँट
नदी का वही चाँद
हथेली पे उतरा ।
2
शहर मेरा
मुरझा गया कुछ
चलो सींच दें
डाले इंसानियत
और प्यार की खाद ।
3
धुला चाँद- सा
आसमाँ का चेहरा
हँसा बादल
निखरा -निखरा -सा
बरसात के बाद ।
4
वो छूटे लम्हे
समेटे लिए मैंने
हो कर लीन
जिऊँ उन्हें दोबारा
जो हो साथ तुम्हारा ।
5
दिलो- दिमाग
किया आत्म-मंथन
कशमकश
हुई प्रक्रिया पूरी
मिटी रिश्तों की दूरी ।
6
दौड़े शहर
रेलगाड़ी हो जैसे
लटके हम
जिंदगी को पकड़ें
जैसे गोद में बच्चा ।
7
मत उलझो
जीवन से अपने
सुलझा इसे,
डूबकर शून्य में
कहीं खो न हो जाओ ।
8
फिर बसंत
आया देने है फूल
झोली फैलाओ
धरती की चादर
सतरंगी बनाओ
9
देतीं ऋतुएँ
अपने बदन से
तोड़के फूल
हरे पत्तों की थाली
सजी छटा निराली ।
10
रिश्तों को पोतो
प्रेम के रंग ही से
ढह न जाये
दीवारें प्यार -भीगी
खाएँ नही चुगली ।
11
ज़िदगी रूई
मत बनाओ भारी
डुबाके इसे
दुखों वाले पानी में,
उड़ाओ आसमाँ में ।
12
रिश्ते पंछी -से
पकड़ो जो सख्ती से
ये उड़ जाएँ,
सहलाओ प्यार से
तुम्हारे पास आएँ ।
13
कच्ची धूप से
खिले अजब रिश्ते
पकाओ धूप
औ’ प्रेम की आँच में
फिर चमकें रिश्ते
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6 टिप्पणियां:
अनीता जी सभी तनका एक से बढकर एक हैं इक ही तारीफ़ करुँगी तो दूसरे से न इंसाफी होगी बहुत सुंदर भाव हैं बधाई............
सादर,
अमिता कौंडल
बहुत सुंदर तांका .... रिश्तों की अहमियत को कहते हुये
सभी ताँके बहुत अच्छे लगे...मेरी बधाई...|
प्रियंका
सभी ताँका बेहतरीन. ये खास अच्छा लगा और इसके बिम्ब भी बहुत अनूठे...
दौड़े शहर
रेलगाड़ी हो जैसे
लटके हम
जिंदगी को पकड़ें
जैसे गोद में बच्चा ।
बहुत शुभकामनाएँ.
एक से एक सुन्दर ताँका खूबसूरत भाव....बधाई हो।
कृष्णा वर्मा
शहर मेरा मुरझा गया कुछ चलो सींच दें डाले इंसानियत और प्यार की खाद ।
अनीता जी की कलम के तेवर शब्दों से झांक रहे हैं। अति सुंदर अक्स आँखों में उतारा आए हैबधाई व शुभकामनाएँ
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