डॉ हरदीप कौर सन्धु
1
चंचल चाँद
खेले बादलों संग
आँख-मिचौली
मन्द-मन्द मुस्काए
बार-बार खो जाए
2
दूल्हा वसन्त
धरती ने पहना
फूल- गजरा
सज-धज निकली
ज्यों दुल्हन की डोली
3
ओस की बून्द
मखमली घास पे
मोती बिखरे
पलकों से चुनले
कहीं गिर न जाएँ !
4
दुल्हन रात
तारों कढ़ी चुनरी
ओढ़े यूँ बैठी
मंद-मंद मुस्काए
चाँद दूल्हा जो आए !
5
बिखरा सोना
धरती का आँचल
स्वर्णिम हुआ
धानी -सी चूनर में
सजे हैं हीरे- मोती
6
पतझड़ में
बिखरे सूखे पत्ते
चुर्चुर करें
ले ही आते सन्देश
बसंती पवन का
7
पतझड़ में
बिन पत्तों के पेड़
खड़े उदास
मगर यूँ न छोड़ें
वे बहारों की आस
8
बिखरे सूखे पत्ते
चुर्चुर करें
ले ही आते सन्देश
बसंती पवन का
7
पतझड़ में
बिन पत्तों के पेड़
खड़े उदास
मगर यूँ न छोड़ें
वे बहारों की आस
8
हुआ प्रभात
सृष्टि ले अँगड़ाई
कली मुस्काई
प्रकृति छेड़े तान
करे प्रभु का गान
सृष्टि ले अँगड़ाई
कली मुस्काई
प्रकृति छेड़े तान
करे प्रभु का गान
9
अम्बर छाईं
घनघोर घटाएँ
काले बादल
घिर-घिर घुमड़े
जमकर बरसे !
10
बादल छाए
चलीं तेज़ हवाएँ
बरसा पानी
भागी रे धूल रानी
यूँ घाघरा उठाए !
घनघोर घटाएँ
काले बादल
घिर-घिर घुमड़े
जमकर बरसे !
10
बादल छाए
चलीं तेज़ हवाएँ
बरसा पानी
भागी रे धूल रानी
यूँ घाघरा उठाए !
11
ओस की बूँदें
बैठ फूलों की गोद
लगता ऐसे
देखने वो निकलीं
छुपकर के रूप
ओस की बूँदें
बैठ फूलों की गोद
लगता ऐसे
देखने वो निकलीं
छुपकर के रूप
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13 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर ।
बधाई ।।
बहुत सुंदर तांका हैं हरदीप जी हार्दिक बधाई...खासकर यह वाला तो मुझे मेरे गॉंव ले गया
बिखरा सोना
धरती का आँचल
स्वर्णिम हुआ
धानी -सी चूनर में
सजे हैं हीरे- मोती
सादर,
अमिता कौंडल
प्रकृति का बड़ा सजीला-सटीक वर्णन है इन ताँका में...बधाई...।
प्रियंका
बहुत सुंदर ...हर तांका अपने मेन गहन भाव भरे हुये
बहुत खूबसूरत तांका हरदीप जी बहुत बधाई।
सभी तांका बहुत सुन्दर हैं ....मनमोहक...बहुत बधाई...!
बहुत ही सुन्दर भाव लिए हुए....हर तांका ख़ूबसूरत है....
सादर
aap ke sabhi tanka bahut khoobsurat hain....aapke kavya mein din-b-din bahut hi nikhaar aa raha hai.....bahut badhai
subh ishayon sahit
devinder sidhu
वाह, क्या बात है! …हर ताँका रोचक लगा और शहर से दूर कहीं प्रकृति की गोद में ले गया! मनोस्थिति कुछ यूँ हो गई:
अम्बर छाईं
घनघोर घटाएँ
काले बादल
घिर-घिर घुमड़े
जमकर बरसे !
आपको हार्दिक बधाई और धन्यवाद!
सादर/सप्रेम
सारिका मुकेश
चंचल चाँद
खेले बादलों संग
आँख-मिचौली
मन्द-मन्द मुस्काए
बार-बार खो जाए
waah bahut sunder ek se badhkar ek badhai
सभी तांका अत्यंत मनभावन और मोहक ! मोहक प्रकृति के सौंदर्य को बहुत ही खूबसूरत शब्दों में चित्रित किया है आपने ! आपको पढ़ कर परम आनंद की अनुभूति हुई!
बधाई डॉ हरदीप कौर सन्धु जी !
बादल छाए
चलीं तेज़ हवाएँ
बरसा पानी
भागी रे धूल रानी
यूँ घाघरा उठाए !
धुल का घाघरा उठा के भागना बहुत सुंदर बिम्ब
रचना
सभी ताँका बहुत सुन्दर, बहुत प्यारा बिम्ब...
दुल्हन रात
तारों कढ़ी चुनरी
ओढ़े यूँ बैठी
मंद-मंद मुस्काए
चाँद दूल्हा जो आए !
बधाई.
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