1- प्रो. दविंद्र कौर सिद्धू
1
दर्पण देखूँ
झूठ- फरेब- दगा
किया ज्यों उल्टा
चेहरा भी फरेबी
कहीं वो मैं तो नहीं ।
2
ओस के आँसू
धो दें हर सुबह
फूल गेंदे का
इतराया जीभर
चटकी कली -कली ।
3
नयन वाले
नयन दे तो देखूँ
मूरत तेरी
हुलसे ये अम्बर
सुन लूँ जो तान मैं ।
4
शीतलता पे
नूरो -पगी फुहार
अनोखा राग
ज्यों आत्मा की हिलोर
तुझे ही सिमरती ।
5
साँझ दिलों की
तोड़कर सीमाएँ
धड़क उठी
पूर्व -पश्चिमी हवा
सौरभ यूँ बाँटती ।
6
कोयल कूक
बनी हिज्र की हूक
चर्खा कातती-
बताना फौजी मेरे
हमारी याद आई?
7
हाथ में दीप
शांति और प्यार का
तू बढ़ता जा
अज्ञान के तम में
रौशनी जगमगा !
-0-
2-रेखा रोहतगी
1
प्रेम की कहानी
सुन-सुन अघाई
सच्ची न पाई
दिल पड़े थामना
सच का हो सामना ।
2
खुशी देकर
मैंने दु:ख भगाया
तो सुख पाया
तुझे हँसता देख
मैंने आनन्द पाया ।
3
मन का पंछी
ले तन का पिंजरा
उड़ना चाहे
किन्तु उड़ न पाए
वृथा छटपटाए ।
-0-
3 टिप्पणियां:
behtreen har pankti
बेहतरीन सोच की बेहतरीन रचना.... शुभकामनायें
हाथ में दीप
शांति और प्यार का
तू बढ़ता जा
अज्ञान के तम में
रौशनी जगमगा !
बहुत सुंदर तांका हैं दविंद्र जी बधाई.
खुशी देकर
मैंने दु:ख भगाया
तो सुख पाया
तुझे हँसता देख
मैंने आनन्द पाया ।
रेखा जी बहुत सुंदर भाव हैं बधाई,
सादर,
अमिता कौंडल
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