ओ मेरे कान्हा !
ज्योत्स्ना शर्मा
ओ मेरे कान्हा !
पीडा़ थी मेरी
तुमको क्यों रुलाया
चाहो तो तुम
यूँ मुझको सता लो
जैसे भी भाये
मुझे वैसे जला लो
इतना सुनो-
तुम हो प्राण मेरे
मुझमें बसे
'खुद ' को तो हटा लो
मुझसे कहो-
दर्द मेरे लिए थे
भला तुम क्यों सहो ...?
-0-
(चित्र: साभार गूगल)
10 टिप्पणियां:
इतना सुनो-
तुम हो प्राण मेरे
मुझमें बसे
'खुद ' को तो हटा लो
मुझसे कहो-
दर्द मेरे लिए थे
भला तुम क्यों सहो ...?
बहुत सुन्दर
कृष्णा वर्मा
प्रेम सरोवर
kalamdaan
मुझमें बसे
'खुद ' को तो हटा लो
मुझसे कहो-
दर्द मेरे लिए थे
भला तुम क्यों सहो ...?
बहुत सुंदर कविता! हार्दिक बधाई और धन्यवाद!
सादर/सप्रेम
सारिका मुकेश
मुझमें बसे
'खुद ' को तो हटा लो
मुझसे कहो-
दर्द मेरे लिए थे
भला तुम क्यों सहो ...?
बहुत सुंदर कविता! हार्दिक बधाई और धन्यवाद!
सादर/सप्रेम
सारिका मुकेश
सार्थक रचना ..बधाई ...
डा. रमा द्विवेदी
मुझसे कहो-
दर्द मेरे लिए थे
भला तुम क्यों सहो ...?
बहुत सुन्दर...बधाई...।
बहुत ही भावपूर्ण और सुंदर "चोका" छंद रचने के लिए बधाई स्वीकार करें ज्योत्स्ना शर्मा जी।
बहुत आभार ...आपके शब्द मेरी प्रेरणा हैं...सादर ज्योत्स्ना
वाह ............. कृष्ण जी के प्रेम का अमृत बरस रहा है इस कृति में !
जय श्री कृष्ण
जय श्री कृष्ण ....एवं ह्रदय से आभार इस सहृदय अभिव्यक्ति के लिए !
सादर
ज्योत्स्ना शर्मा
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