ताँका के तीर/ नीलमेन्दु सागर
1
चुनावी दौर
हवाई घुड़दौड़
खेल कमाल
विक्रम खस्ताहाल
कंधों पर बेताल।
2
दिखता हरा
सावन के अंधों को
सारा सहरा
लोक हुआ कबाड़
तंत्र देता पहरा।
3
बाँग ही बाँग
सियासत की धुंध
मुर्गे या मुल्ले
मुश्किल पहचान
साँसत में बिहान।
4
बिना बादल
वर्षा है धुआँधार
झूठ साकार
नए-नए टोटके
खेत रहे पटते।
5
प्यास की आग
बुझाए कौन गांधी
प्रश्न है बड़ा
आश्वासन से भरा
छिद्रयुक्त है घड़ा।
-0-
नीलमेन्दु सागर,हनुमाननगर (पटना),
-0-
2-कपिल कुमार
1.
बचा ही क्या था?
बस काँटे-ही-काँटे
गुलाब खिलें
ज्यों ही साथ बैठके
तुमने दुःख बाँटें।
2.
मेरी तरह
दोपहरी में तपे
एक आस में
प्रिय की तलाश में!
दहकते पलाश।
-0-
8 टिप्पणियां:
चुनाव के माहौल पर नीलमेन्दु सागर जी ने बहुत सुन्दर ताँका लिखा है, बधाई।
कपिल जी को सुन्दर ताँका के लिए बधाई।
नीलमेंदु जी की रचना में उद्बोधन की तानकर सुनाई दी| बधाई आपको|कपिल जी के कोमल भाव लिए ताँका मन मुग्ध कर गये| हार्दिक बधाई दोनों रचनाकारों को
शशि पाधा
* तन्कार के स्थान पर टंकार लिखना चाहती थी| क्षमा करें
शशि पाधा
बहुत सुंदर ताॅंका, हार्दिक शुभकामनाऍं।
बहुत सुंदर ताँका।
हार्दिक बधाई आदरणीय नीलमेंदु सागर जी एवं कपिल जी को।
सादर
बहुत सुंदर ताँका। दोनों रचनाकारों को हार्दिक बधाई ।सुदर्शन रत्नाकर
बहुत सुंदर ताँका...नीलमेंदु जी एवं कपिल जी कोहार्दिक बधाई।
सुंदर ताँका के लिए मेरी हार्दिक बधाई आदरणीय नीलमेंदु सागर जी एवं कपिल जी को
एक टिप्पणी भेजें