सुदर्शन रत्नाकर
1
बहाती रही
निरन्तर रजनी
ओस के आँसू
पर मिल न पाई
प्रियतम सूर्य से ।
2
कुहासा हटा
बही फागुनी हवा
खिले हैं फूल
पिक ने तोड़ा मौन
अँगना आया कौन !
3
झंकृत हुए
मन-वीणा के तार
बही जो हवा
मुस्कुराई वीथिका
खिले फूल पलाश ।
-0-
9 टिप्पणियां:
बहाती रही
निरन्तर रजनी
ओस के आँसू
पर मिल न पाई
प्रियतम सूर्य से ।
yh vishesh , sbhi utkrisht
badhaai
bahut sundar ..
sabhi tanka sunder likhe hain badhai.
pushpa mehra.
कुहासा हटा
बही फागुनी हवा
खिले हैं फूल
पिक ने तोड़ा मौन
अँगना आया कौन !
aapki lekhni ko naman bahut sunder likha hai
badhai
aapko
rachana
बहुत सुन्दर ताँका....बधाई आपको!
bahut sundar ..saras !!
haardik badhaaii
कुहासा हटा
बही फागुनी हवा
खिले हैं फूल
पिक ने तोड़ा मौन
अँगना आया कौन !
वसंतागमन की आहट है इस तांका में | सभी मनभावन | बधाई आदरणीय सुदर्शन जी |
शशि पाधा
sunder srajan ke liye aapko badhai hai.
सुन्दर बिम्बों से सजा तांका बहुत मनभावन लगा...| हार्दिक बधाई...|
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