भीकम सिंह
1
एक मुस्कान
खेत बिखेरता है
नित्य निर्मल
जो, गाँवों की आँखों में
दिखती पल - पल ।
2
कच्चे रस्ते
से
उड़कर जाती है
धूल की पर्ती
खुला ऐलान जैसे
स्वच्छता को करती ।
3
घिसे दाँतों में
गालियों को लेकर
घूमते गाँव
खेत -खलिहानों में
बीज के गोदामों में ।
4
गाँवों
में रखे
हल्की - हल्की -सी धूल
हवा तहाके
चौमासे में पहने
बरसात नहाके ।
5
कल आँधी
में
बिखर गया खेत
पड़ा रहा ज्यों
बेजान,थका
-हारा
खलिहान हमारा ।
6
हर कोण से
खलिहान देखता
मेड़ों तलक
खेतों से दिखा गाँव
दूर तक फलक ।
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8 टिप्पणियां:
शुभकामनाएं
वाह! बहुत सुंदर तांका, बधाई भीकम सिंह जी!
अत्यंत सुंदर। हार्दिक बधाई सर।
मेरे ताॅंका प्रकाशित करने के लिए सम्पादक द्वय का हार्दिक धन्यवाद और टिप्पणी करने के लिए आप सभी का हार्दिक आभार।
आपके ताँका पढ़ कर गाँवों की छवि आँखों के आगे आ जाती है। बहुत सुंदर। हार्दिक बधाई। सुदर्शन रत्नाकर
बहुत सुंदर तांका...हार्दिक बधाई।
सभी ताँका बहुत सुन्दर। हार्दिक बधाई भीकम सिंह जी।
भीकम सिंह के ग्रामीण जीवन के अद्भुत-सुंदर ताँका सृजन । हार्दिक बधाई ।
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