शुक्रवार, 17 नवंबर 2023

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 भीकम सिंह



1

एक मुस्कान

खेत बिखेरता है

नित्य निर्मल

जो, गाँवों की आँखों में

दिखती पल - पल 

2

कच्चे रस्ते से

उड़कर जाती है

धूल की पर्ती

खुला ऐलान जैसे

स्वच्छता को करती ।

3

घिसे  दाँतों में

गालियों को लेकर

घूमते गाँ

खेत -खलिहानों में

बीज के गोदामों में ।

4

गाँवों में रखे

हल्की - हल्की -सी धूल

हवा तहाके

चौमासे में पहने

बरसात नहाके ।

5

कल आँधी में

बिखर गया खेत

पड़ा रहा ज्यों

बेजान,थका -हारा

खलिहान हमारा ।

6

हर कोण से

खलिहान देखता

मेड़ों तलक 

खेतों से दिखा गाँ

दूर तक फलक ।

 

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8 टिप्‍पणियां:

Anju Tripathi ने कहा…

शुभकामनाएं

प्रीति अग्रवाल ने कहा…

वाह! बहुत सुंदर तांका, बधाई भीकम सिंह जी!

dr.surangma yadav ने कहा…

अत्यंत सुंदर। हार्दिक बधाई सर।

भीकम सिंह ने कहा…

मेरे ताॅंका प्रकाशित करने के लिए सम्पादक द्वय का हार्दिक धन्यवाद और टिप्पणी करने के लिए आप सभी का हार्दिक आभार।

बेनामी ने कहा…

आपके ताँका पढ़ कर गाँवों की छवि आँखों के आगे आ जाती है। बहुत सुंदर। हार्दिक बधाई। सुदर्शन रत्नाकर

Krishna ने कहा…

बहुत सुंदर तांका...हार्दिक बधाई।

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

सभी ताँका बहुत सुन्दर। हार्दिक बधाई भीकम सिंह जी।

Vibha Rashmi ने कहा…

भीकम सिंह के ग्रामीण जीवन के अद्भुत-सुंदर ताँका सृजन । हार्दिक बधाई ।