डॉ हरदीप कौर सन्धु
स्कूल ऑफ़ स्पेशल एजुकेशन -"चिल्ड्रन विथ स्पेशल नीड्स "… भीतर जाते ही मेरी सोच रुक- सी
गई थी .... मैं तो जैसे निष्पन्द मूर्त्ति
बन गई थी और भीतर तक काँप गई थी।
आधी छुट्टी का समय था। बच्चे स्कूल में बने अलग -अलग हिस्सों में खेल रहे थे ;जो बड़ी -बड़ी ग्रिल लगा कर बनाए हुए थे। एक भाग में कुछ
बच्चे व्हील चेयर पर बैठे इधर उधर देख रहे थे। दूसरे हिस्सों में कोई बच्चा ऊँचे
से चीख रहा था , कोई दीवार की तरफ मुँह करके छलाँगें लगा रहा
था, कोई बेहताशा दौड़ रहा था ,तो कोई
ऐसे ही हाथ हिला -हिलाकर बिन शब्दों से अपने -आप से ही बातें कर रहा था। एक बच्चे मेरा हाथ पकड़ कर मुझे अपनी ओर खींचने
लगा जैसे वह मुझे कुछ बताना चाह रहा हो।
मुझे विस्मित तथा भयभीत-सी देखकर स्कूल का एक कर्मचारी बताने लगा,
" ये बच्चे बोल नहीं सकते। अपने भावों को चिलाकर या आपका हाथ थाम
कर प्रकट करते हैं। कुछ बच्चे मुँह द्वारा खा भी नहीं सकते। उनके
पेट में लगी ट्यूब में सीधे ही
भोजन डाला जाता है। बहुत से बच्चों को टट्टी
-पेशाब का भी पता नहीं चलता। इस स्कूल में इन दिमागी तथा शारीरिक तौर से विकलांग
बच्चों को खुद को सँभालने की ही ट्रेनिंग दी जाती है"
सुनकर मेरी आँखे नम
हो गईं। मैं सोचने लगी कि जब किसी के घर में किसी बच्चे का जन्म होने वाला होता है
,तो हर
दादी को पोते का इंतजार रहता है। उसने शायद ही कभी ये दुआ की हो कि हे प्रभु आने
वाला बच्चा तंदरुस्त हो। मेरी सोच विकलांग बच्चों तथा इनके माता-पिता पर आ कर अटक गई –
चढ़ती
लाली
पत्ती
–पत्ती बिखरा
सुर्ख
गुलाब।
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16 टिप्पणियां:
मर्मस्पर्शी .....अधिकतर लोग ऐसे जो अपने ही बच्चों के प्रति सहनशक्ति खो बैठते हैं और कुछ उम्र भर इन बच्चों की देखभाल का जिम्मा लेते हैं...
ऐसे बच्चे भगवान की देन होते हैं और इनकी देखभाल करना भी सत्कर्म है | मैं स्वयं ऐसे बच्चे को जानती हूँ |बहुत ही मर्मस्पर्शी प्रस्तुति | धन्यवाद हरदीप जी |
ऐसे बच्चे भगवान की देन होते हैं और इनकी देखभाल करना भी सत्कर्म है | बहुत ही मर्मस्पर्शी प्रस्तुति | धन्यवाद हरदीप जी |
सच कहा! आँखें भिगोता हुआ, भयभीत कर देने वाला दृश्य...
वो लोग महान हैं, जो इनकी देखरेख करते हैं , इन्हें आत्मनिर्भर बनने में सहायता करते हैं ! बहुत धैर्य चाहिए इस काम के लिए !
बच्चे के जन्म से पहले, ईश्वर से यही दुआ होने चाहिए.... 'लड़का या लड़की जो भी दे स्वस्थ दे!'
हाइकु भी दिल को छूने वाला!
~सादर
अनिता ललित
हाइबन को पसंद करने के लिए मैं सभी दोस्तों का धन्यवाद करती हूँ , क्योंकि हम यह विधा पहली बार पेश कर रहे हैं …तो पाठकों की अधिक जानकारी के लिए बता दूँ कि वार्ता के अंत में जो हाइकु लिखा जाता है ,वह इससे जुड़ा होता है और भावों को और विशालता देता है ……………इस हाइकु पर ध्यान दीजिएगा -
चढ़ती लाली -
पत्ती -पत्ती बिखरा
सुर्ख गुलाब।
यह हाइकु इन विकलांग बच्चों के माता -पिता के मन की दशा को ब्यान करता है …… इन बच्चों की जिंदगी तो अभी शुरू ही हुई है अभी तो दिन चढ़ा ही है। सूर्य की लालिमा ही दिखाई दे रही है …………मगर सुर्ख गुलाब …………… ये बच्चे ………पत्ती -पत्ती हो बिखर भी गए॥ इनको तमाम जिंदगी इनके माता -पिता ही सँभालेंगे। आशा करती हूँ कि हमारा ये प्रयास आपको पसंद आया होगा।
साभार डॉ हरदीप कौर सन्धु
मर्मस्पर्शी ... एक तरफ माता पिता के सपनो का टूटना दूसरी तरफ इस तरह के बच्चो की घिसटती सी जिन्दगी . निशब्द हूँ .. दीदी आपका ये प्रयास उम्दा है |
bahan hardeep ji apake dvara likha haiban , jisamen viklang bachhon ki avyakt manovyatha usimen ghutan aur us ghutan ko samokhe jitana is duniya ko dekhate ,samajhate hain usame ve pankh -vihin pakshi ki bhanti jee rahe hain,padh kar hi man dravit ho gaya to dekh kar apake man ka dravit hona to svabhavik hai svargiya viyogi hari ki panktiyan -ah se upaja hoga gan , yahin to chrithart hotin hain. main kuchh panktiyan likh rahi hun -din au rat, yahi dua mmanayen, roshan ho suraj ,khilen suman , hon svasth - sugandhit ,chahen jis desh hon.bahan apako badhai.
pushpa mehra.
सबसे पहले तो जैसे निःशब्द हूँ...| उन बच्चों की...उनके माता-पिता...दादा-दादी...नाना-नानी की मनोव्यथा कल्पना से परे है...| मन भीग गया...| पर मैं उनसे सहानुभूति नहीं जताऊँगी क्योंकि सहानुभूति जताने का मतलब होगा, हम उन्हें खुद से कमतर आंक रहे...और ये सब कमतर तो किसी भी तरह नहीं...| ये सच में विशेष हैं...क्योंकि इनकी क्षमताओं पर उस ईश्वर को थोड़ा ज्यादा ही भरोसा है...|
हाइबन से परिचित कराने के लिए आपका हार्दिक आभार...| आप लोगो के प्रयास से एक दिन ये विधा भी नई ऊंचाइयां छूएगी...| शुभकामनाएँ...|
हाइबन की नई विधा को आपने हम तक पहुंचाया , बांटा . धन्यवाद .
अत्यंत मार्मिक ! प्रभु हमें शक्ति दे और धैर्य दे कि और कुछ नहीं तो इन ख़ास बच्चों के लिए हम हमदर्दी रखें और अवसर मिलने पर कुछ सार्थक कर सकें।
सुर्ख गुलाब बहुत मार्मिक है । आप यूँ ही लिखते रहिए हाइबन की शुरुआत आपने की है । आशा करता हूँ कि इस विधा के बहाने ऐसी ही अच्छी कविताएँ सामने आएंगी । डॉ सतीशराज पुष्करणा
bhagvan ke bheje doot hote hai vo log jo in bachcho ki dekhbhaal karte hai .....marmsparshi peastuti ...surkh gulab......atyant marmik....nai vidha ko hum tak pahuchane ke liye .....bahut bahut...dhanyvaad hardeep ji .
प्रिय हरदीप , आपका हाइबन 'सुर्ख़ गुलाब' पढ़ा । पूरे मन -प्राण से इसकी गहराई में खो गई । आप जैसे संवेदनशील इस शैली में भी चार चाँद लगाएँगे । इसे पढ़कर मेरी आँखें भर आईं । आपको मेरी तरफ़ से हार्दिक बधाई और आशीर्वाद भी । आपके नए हाइबन का इन्तज़ार रहेगा । सस्नेह -डॉ सुधा गुप्ता मेरठ
बहुत मर्म स्पर्शी प्रस्तुति है हरदीप जी | बेहद भाव पूर्ण होने के साथ साथ समाज के लिए एक ऐसा सन्देश लिए है जिसकी महती आवश्यक्ता है | दिल से निकली इन पंक्तियों में वह सामर्थ्य है जो आँखों को नम कर दे ,सीधे दिल पर असर करे और खुद-ब-खुद हाथ दुआ में उठ जाएँ |
नमन ऐसे सार्थक सृजन को ..बहुत शुभ कामनाएँ !!
ज्योत्स्ना शर्मा
बहुत भावुक .......जबाब नहीं ..
हमारी चेतना का भाग्य खुल गया | कितना मार्मिक, हृदयस्पर्शी चित्रण है | इस प्रकार के लेखकों की कलम को सच्चे हृदय नमन |
मुख्य सम्पादक
श्याम त्रिपाठी
हिन्दी चेतना
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