शुक्रवार, 30 मई 2014

बेपर्दा बैठी धूप

कृष्णा वर्मा
1
लीपती भोर
नारंगी आकाश
भरती नव श्वास,
प्रात: पवन
जाता है संतूर
पंछी गाए सुदूर
2
सिमटी नर्म
कोहरे की चादर
बेपर्दा बैठी धूप
तनी फिज़ाएँ
भौरा कसमसाया
देख कली का रूप
3
ओढ़ के रूप
कुसुम इतराएँ
खिले बाग में आज,
करवट ले
तु ने महकाए
हर कली के पोर
4
झरझराया
झीना- झीना कोहरा
ओस ले अँगड़ाई
जब मुस्काई

सिंदूरी किरणें तो
सींचे थे तन-मन
5
निभा के उम्र
हरियाले पत्ते
बदल रहे रंग,
अनूठा नूर
पीले- लाल भूरे से
डोलें मस्ती में चूर।
6
पत्ते क्या गिरे
छाने लगी उदासी
ओस के आँसू झरे,
उन्मन पेड़
पगडण्डी सीली -सी
गीले हैं खेत-क्यारी
7
डगमगाते
कदमों- से पल्लव
गिरा नदी प्रवाह,
प्यार से चूम
प्रवाह ने दुलारा
अंक से लिया लगा
-0-


3 टिप्‍पणियां:

Jyotsana pradeep ने कहा…

LEEPTI BHOOR.SIMTI NARM ,JHARJHARAYA...KIS KIS KI TAARIF KAROU SAKSHAAT PRAKRTI KE CHITR SAJEEV HO UTHE ...BAHUT SUNDER KRISHNA JI....SACH BADHAI KI PAATR HAI AAP.

ज्योति-कलश ने कहा…

लीपती भोर ....ओढ़ के रूप ...डगमगाते कदमों से ....बहुत सुन्दर सेदोका हैं कृष्णा जी ..हार्दिक बधाई !

Pushpa mehra ने कहा…

simati narm kohare ki chadar,beparda baithi dhup.......... bahut sunder chitr khincha hai.kreshna ji apko badhai.
pushpa mehra.