डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा
1
रचना क्या ख़ूब रची !
दुनिया में नारी ,
बगिया में दूब रची ।
2
रिश्ता यूँ
टूट गया
पश्चिम ना
अपना
पूरब भी छूट
गया।
3
किस पर
इल्जाम रखें
बीज बबूल
दिए
कैसे अब आम
चखें।
4
छोड़ें भी
नादानी
कदर यहाँ
हमने
खुद अपनी नाजानी |
5
उनसे जब
प्यार हुआ
साँसें गीत
बनीं
जीवन उपहार
हुआ ।
6
कैसा उपहार
दिया
बोल गए
कान्हा
लो तुमको
तार दिया ।
7
कान्हा मत
हास करो
तार न अब
चलते
मन आस-उजास भरो !
-0-
7 टिप्पणियां:
रिश्ता यूँ टूट गया
पश्चिम ना अपना
पूरब भी छूट गया। बहुत सुन्दर
2
रिश्ता यूँ टूट गया
पश्चिम ना अपना
पूरब भी छूट गया।
बहुत सुन्दर माहिया ज्योत्स्ना जी.....बधाई !
वाह्ह बहुत ही सुन्दर माहिया .. सभी ..बधाई ..:)
" छोड़ें भी नादानी /कदर यहाँ हमने /खुद अपनी ना जानी | " सभी माहिया बहुत ही सुन्दर ! ज्योत्स्ना जी, बहुत - बहुत बधाई !
bahut bahut dhanyawaad aa sunita ji ,Krishna ji evam manjul ji ...aapake bol anmol hain mere liye ...:)
saadar
jyotsna sharma
रिश्ता यूँ टूट गया
पश्चिम ना अपना
पूरब भी छूट गया।
मार्मिक किन्तु सत्य...|
बधाई...खूबसूरत माहिया के लिए...|
प्रियंका
bahut aabhaar Priyanka ji !
jyotsna sharma
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