अनुपमा त्रिपाठी
1
जग छल से जीत गया
,
छलनी मन करके,
इक सपना रीत गया ।
2
जग छल कर हँसता
है
सच के नयन भरे
मन -मेघ बरसता है
।
3
ये रीत पुरानी है
मन की पीर बनी
हर साँस कहानी है ।
4
अनबूझ पहेली है
आँसू में लिपटी
हर हूक सहेली है ।
5
सुख करवट बदल रहा
दुःख के मेघ घिरे
मन झिर- झिर मचल रहा ।
6
यह कौन नगरिया है
आँगन धूप खिली
चन्दन मन दरिया है ।
7
मन्द पवन डोल रही
आँचल लहराकर
कोमल मन खोल रही ।
-0-
10 टिप्पणियां:
एक-एक माहिया बहुत सुन्दर भावपूर्ण है!
अनुपमा जी बहुत-२ बधाई!
Bahut dard bhara hai in mahiya men,itni gahan abhivykti ke liye hardik shubhkamnaye....
anupma ji yathaa naama tathaa gunaa . maahiyaa kyaa kmaal kar daalaa. Gaagar men saagr bhr daalaa . Ati sunder bhavon ke liye hriday se badhayee.
Shiam Tripathi
सभी माहिया खूबसूरत और मन के विभिन्न रंगों को व्यक्त करते हैं। अनुपमा जी आपको हार्दिक शुभकामनाएं !
बहुत ही सुंदर व भावपूर्ण माहिया!
बधाई अनुपमा जी!
~सादर!!!
ये रीत पुरानी है
मन की पीर बनी
हर साँस कहानी है ।
यह माहिया विशेष लगा ,सभी मनभावन हैं .
बधाई
बहुत सुन्दर माहिया ..
अनबूझ पहेली है
आँसू में लिपटी
हर हूक सहेली है ।.....आह भी ..और ...वाह भी ..बधाई ...अनुपमा जी
सर्वप्रथम आभार हिमांशु भैया का व हरदीप जी का यहाँ मेरे माहिया देने के लिए। …!!फिर आप सभी गुनी जानो का आभार कि आपने इन माहिया को इतना सम्मान दिया,सराहा !!पुनः ह्रदय से आप सभी का आभार !!!!!!!
हूक और सहेली ... एकदम नई उदभावना और मन का अनोखे अंदाज में झिर झिर मचलना मन को भा गया अनुपमाजी | बधाई सुन्दर सृजन के लिए ...
सभी माहिया बहुत ही सुन्दर और भावपूर्ण लगे...हार्दिक बधाई...|
प्रियंका
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