1-डॉ हरदीप कौर सन्धु
1.
उदास धुँध
अँधियारे -लिपटी
गुमनाम ज़िन्दगी,
ढूँढ़ रही है -
उजली किरणों की
रंगीन परछाई ।
2.
काते अकेला
विरह की पूनियाँ
मन-पीड़ा
का चर्खा
छाया त्रिंजण
गुम है कहीं आज
हम ढूँढ़
न पाए ।
3.
बावरा मन
भटके वन-वन
साथ चली तन्हाई
खुद को ढूँढ़े
अनजान राहों में
खुद की परछाई
।
4
भावों की छाया
सारे कर्म हमारे
निर्मल-कलुषित,
हम पावन
तो धरा मधुबन
खिलते उपवन ।
-0-
2-सुभाष लखेड़ा
1.
सूरज डूबा
खोज रहा हूँ यहाँ
अपनी परछाईं
यह क्यों हुआ
उजाले के जाते ही
क्यों हो गई जुदाई।
2
परछाइयाँ
कभी नहीं बनना
तुम किसी के साथ
होगा अँधेरा
बाट नहीं सूझेगी
हो जाओगे अनाथ ।
-0-
दिल्ली के साकेत कोर्ट ने दिसम्बर काण्ड के दरिन्दों को अभी
-अभी फाँसी की सजा सुनाई है। यह इस बात का प्रमाण है कि सताए गए प्राणी की परछाई भी बहुत दूर तक पीछा करती है । इस अवसर पर कुछ दिन पूर्व प्राप्त ज्योत्स्ना प्रदीप
के दो ताँका दिए जा रहे हैं ।
सम्पादक द्वय
-0-
वो सबला थी -ज्योत्स्ना प्रदीप
1
वो सबला
थी
नहीं कोई
कामिनी
कड़कती
दामिनी,
खूब गरजी,
दिलों को
हिला गई
देश को
मिला गई ।
2.
वो
बेगुनाह
खड़ी नभ
की राह
नेत्र-जल
अथाह
लिये है
आह
न्याय की
संवेदना
अचेत में
चेतना !
-0-
5 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर सेदोका ....
उदास धुँध में रंगीन परछाइयों को ढूँढ़ना ,पीड़ा का चरखा और सूरज डूबा तो अपनी परछाइयों की तलाश बहुत प्रभावी ....
दामिनी पर दमकते सेदोका सामयिक एवं मन को छू लेने वाले हैं ...सभी रचनाकारों को बहुत बधाई !
manniiya bahan hardeepjiparchaiyon ka chitramay chitrankan bemisal hai. apko badhai ke dher sare su man bhenthai. bhai lakheda ji apke sedoka mein eparchaiyon ko chaliya batane ki abhivyakti bahhut sunder hai.jyotsna ji apke tanka bhi sarhniya hai. ap dono ko bhi dheron badhaiyan.
pushpa mehra.
हरदीप जी और सुभाष जी के सेदोका बहुत पसंद आए...हार्दिक बधाई...|
ज्योत्सना जी के तांका झकझोर गए...|
प्रियंका गुप्ता
सभी रचनाएँ सागर - सी गहराईयों - साहित्यिक ऊँचाइयों से ओतप्रोत हैं .
बधाई .
jyotsana mausi....aapki soch ko salaam...hume bht pasand aayi....congo..!
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