शशि पाधा
1
कागा क्या बोल रहा
कुछ ना समझ पड़ी
मन मोरा डोल रहा ।
2
काहे तरसाती है
पी का नाम नहीं
कोयल क्यों गाती है ।
3
किस –किस से बात करूँ
रामा प्रीत बुरी
कानों पे हाथ धरूँ ।
4
कब तक ना आओगे
पीहर दूर नहीं
कह दूँ पछताओगे ।
5
सावन की धार लड़ी
गुमसुम -सी विरहन
नयनों में बाँध खड़ी ।
6
आँगन के छोर धरूँ
चिट्ठी साजन की
आँचल की ओट पढूँ ।
7
शुभ शगुन मनाने दो
सखियों मत रोको
पनघट पे जाने दो ।
8
हाथों में कँगना है
डोली आन खड़ी
माही का अँगना है ।
9
यह चूड़ी पूछ रही
कँगना क्यों खनका
बिंदिया सब बूझ रही ।
10
पूनो की रात हुई
पूछा तारों ने
क्या उनसे बात हुई ।
11
लहरों को गाने दो
आई मिलन- घड़ी
सुर -साज सजाने दो ।
-0-
5 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर ,मधुर माहिया ...हार्दिक बधाई दीदी !
कब तक ना आओगे
पीहर दूर नहीं
कह दूँ पछताओगे ।.......कल ...आज ...और कल ..बेहद प्रभावी ..:)
सादर
ज्योत्स्ना शर्मा
" कागा क्या बोल रहा / कुछ ना समझ पड़ी / मन मोरा डोल रहा ।"
बहुत सुन्दर , सब मधुर प्रभावी माहिया ...हार्दिक बधाई !
namaste shashi ji
behad sundar mahiya lage , hardik badhai , sabhi mahiya ek se badhkar ek hai 4,5,7 10 bahut khas lage
सभी माहिया बहुत सुंदर,बधाई
कब तक ना आओगे
पीहर दूर नहीं
कह दूँ पछताओगे ।
Bahut hi sunder shabd bhedi baan chala hai..soch ki sashaktata rachna ki anubhooti mehsoos karane mein saksham hai
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