डॉ भावना कुँअर
1
टूटा जो मेरा
रंगीन मखमली
सपना,रूठे रंग,
कुछ फूलों में
छिप जा बैठे,उड़े
कुछ तितली संग।
2
मरती रही
तिल-तिलकर मैं
घुटन - कोठरी में,
खुला जो द्वार
मैं तीर-सी निकली
जा मीत- गले लगी।
3
थके हैं आँसू
पर रुक न सका
आँसुओं का सैलाब
बना दरिया
तैराते दिखे लोग
व्यंग्य बाणों की
नौका।
4
बरसों से मैं
ढूँढती फिर रही
ऐसा सुहाना गाँव
बसी हो जहाँ
प्यार बन खुशबू
दुआएँ बन छाँव।
5
अपनी लगी,
जब थी मैं किसी की
उमड़ता था प्यार,
हुई जो तेरी
भूले से भी न होती
कभी आँखें भी चार।
6
बचती फिरूँ
डरी ,सहमी -सी मैं
हिरणी की तरह,
बना शिकारी
हमसफर मेरा
निशाने पर थी मैं
7
सह न पाऊँ
अकेलेपन का ये
पतझर मौसम
इक रोज तो
पुकारेगा बसन्त
सोचूँ ,पीर भगाऊँ।
8
तेरे ये बोल
सुलगाए हैं मुझे
चिंगारियाँ हों जैसे,
उसकी बातें
ठंडक देके जाएँ
अजनबी वो वैसे।
9
भूल न जाएँ
ये उड़ान भरना
रखना ध्यान जरा,
बुनने होंगे
सपने सुनहरे
छू ले गगन -धरा।
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7 टिप्पणियां:
बरसों से मैं
ढूँढती फिर रही
ऐसा सुहाना गाँव
बसी हो जहाँ
प्यार बन खुशबू
दुआएँ बन छाँव।
बहुत सुन्दर भावपूर्ण ...
सभी सेदोका बहुत सुन्दर - मन को भाये । डॉ भावना कुँअर जी बधाई देते हुए मैं यही कहना चाहता हूँ ," मन को भाएं / ऐसे सभी सेदोका / जो ये याद दिलाएं / रूठ गए वे / जो लगे थे अपने / कोरे थे वे सपने। "
भावना जी... सभी सेदोका दिल को चीरते हुए निकल गये.... तीसरा वाला तो पूछिए ही मत... :(
सुंदर अभिव्यक्ति के लिए हार्दिक बधाई!
~सादर!!!
बचती फिरूँ
डरी ,सहमी -सी मैं
हिरणी की तरह,
बना शिकारी
हमसफर मेरा
निशाने पर थी मैं......
सभी उत्कृष्ट प्रस्तुति है , लेकिन यह विशेष लगा .
बहुत सुन्दर सेदोका ......
बरसों से मैं
ढूँढती फिर रही
ऐसा सुहाना गाँव
बसी हो जहाँ
प्यार बन खुशबू
दुआएँ बन छाँव।...और ...
भूल न जाएँ
ये उड़ान भरना
रखना ध्यान जरा,
बुनने होंगे
सपने सुनहरे
छू ले गगन -धरा।...लाजवाब !!
थके हैं आँसू
पर रुक न सका
आँसुओं का सैलाब
बना दरिया
तैराते दिखे लोग
व्यंग्य बाणों की नौका।
बेहतरीन सेदोका मन को छू गया....भावना जी हर्दिक बधाई!
थके हैं आँसू
पर रुक न सका
आँसुओं का सैलाब
बना दरिया
तैराते दिखे लोग
व्यंग्य बाणों की नौका।
सभी सेदोका बहुत अच्छे लगे, पर ये वाला हमारे समाज की एक कटु सच्चाई बयान कर गया...| बधाई...|
प्रियंका
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