शशि पाधा
1
कारी बदरी
अम्बर पर छाई
तू काहे भरमाई
मन की पीर
कह दे बरस के
सोख लेगी ये धरा
2
स्वाति की बूँदें
बचपन की यादें
हम कैसे भुला दें ?
सीपी में मोती
बन कर पलीं वे
पिरो माला पहनें ।
3
मन ने लिखी
नयनों ने पढ़ ली
कागद बिन पाती
तुमने छुआ
मीठी -सी सिहरन
मुझको भिगो जाती ।
4
पूछा धरा ने -
‘काहे बरसते हो
क्यों यूँ सिसकते हो ’
नभ ने कहा -
तुम भी तो तपती
जलती -सुलगती।’
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7 टिप्पणियां:
namaste sahshi ji
sabhi sadoka bahut sundar ,layatmkata aur gahari baat kahate huye ,sabhi bahut sundar lage ,2-3 baut acche lage ,hardik badhai aapko
बहुत प्यारे भाव...
पूछा धरा ने -
‘काहे बरसते हो
क्यों यूँ सिसकते हो’
नभ ने कहा -
तुम भी तो तपती
जलती -सुलगती।’
शशि जी को बधाई.
मन ने लिखी
नयनों ने पढ़ ली
कागद बिन पाती
तुमने छुआ
मीठी -सी सिहरन
मुझको भिगो जाती ।
सभी बहुत सुन्दर
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मन ने लिखी
नयनों ने पढ़ ली
कागद बिन पाती....
पूछा धरा ने -
‘काहे बरसते हो
क्यों यूँ सिसकते हो’
नभ ने कहा -
तुम भी तो तपती
जलती -सुलगती।’.....
bahut sundar bhavpurn rachna shashi ji !
बहुत प्यारे सेदोका...हार्दिक बधाई...|
प्रियंका गुप्ता
मन ने कहा और नयनों ने पढ़ लिया
साधुवाद
स्वाति की बूँदें मोती बनीं कि नहीं लेकिन आपके भाव ...जो बन गए मोती ..अनमोल हैं ...ह्रदय से बधाई और धन्यवाद आपको इतनी सुन्दर प्रस्तुति के लिए !
सादर !
ज्योत्स्ना शर्मा
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