सोमवार, 9 सितंबर 2013

मन की पीर



शशि पाधा
1
कारी बदरी
अम्बर पर  छाई
तू काहे भरमाई
मन की पीर
कह दे बरस के
सोख लेगी ये धरा
2
स्वाति की बूँदें
बचपन की यादें
हम कैसे भुला दें ?
सीपी में मोती
बन कर पलीं वे
पिरो माला पहनें ।
3
मन  ने लिखी  
नयनों ने  पढ़ ली
कागद बिन पाती
तुमने छुआ
मीठी -सी सिहरन
मुझको भिगो जाती ।
4
पूछा धरा ने  - 
काहे बरसते  हो
क्यों यूँ सिसकते हो
नभ ने कहा -
तुम भी तो तपती
जलती -सुलगती।
-0-

7 टिप्‍पणियां:

shashi purwar ने कहा…

namaste sahshi ji
sabhi sadoka bahut sundar ,layatmkata aur gahari baat kahate huye ,sabhi bahut sundar lage ,2-3 baut acche lage ,hardik badhai aapko

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

बहुत प्यारे भाव...

पूछा धरा ने -
‘काहे बरसते हो
क्यों यूँ सिसकते हो’
नभ ने कहा -
तुम भी तो तपती
जलती -सुलगती।’

शशि जी को बधाई.

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

मन ने लिखी
नयनों ने पढ़ ली
कागद बिन पाती
तुमने छुआ
मीठी -सी सिहरन
मुझको भिगो जाती ।

सभी बहुत सुन्दर
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बेनामी ने कहा…

मन ने लिखी
नयनों ने पढ़ ली
कागद बिन पाती....

पूछा धरा ने -
‘काहे बरसते हो
क्यों यूँ सिसकते हो’
नभ ने कहा -
तुम भी तो तपती
जलती -सुलगती।’.....

bahut sundar bhavpurn rachna shashi ji !


प्रियंका गुप्ता ने कहा…

बहुत प्यारे सेदोका...हार्दिक बधाई...|
प्रियंका गुप्ता

alka mishra ने कहा…

मन ने कहा और नयनों ने पढ़ लिया
साधुवाद

ज्योति-कलश ने कहा…

स्वाति की बूँदें मोती बनीं कि नहीं लेकिन आपके भाव ...जो बन गए मोती ..अनमोल हैं ...ह्रदय से बधाई और धन्यवाद आपको इतनी सुन्दर प्रस्तुति के लिए !

सादर !
ज्योत्स्ना शर्मा