रविवार, 29 सितंबर 2013

बिना किरण

कृष्णा वर्मा
1
धरा -सी शक्ति
नारी में समाहित
काहे को ललकारो
फट पड़ी तो
निगल न ले कहीं
लोक के ठेकेदारों ।
2
युगों से खड़ी
मायका ना सासरा
कहाँ से है अबला
शक्ति तो देखो
धरातल ना कोई
बने फिर आसरा ।
3
मर्द यूँ जानें
औरत तो बेचारी
है नियति की मारी,
वे कब जानें
संस्कारों की ख़ातिर
चुप्पी साधे है नारी ।
4
मर्द होता है
यदि ईंट घर की
औरत भी है गारा
बिना किरण
सम्भव कब होता
भानु का उजियारा ।
-0-

7 टिप्‍पणियां:

सुनीता अग्रवाल "नेह" ने कहा…

bahut khub .. vishesh rup se last wale dono sedoka bahut pasand aye mujhe .. badhayi evem shubhkamnaye :)

Guzarish ने कहा…

आपकी इस प्रस्तुति की चर्चा कल सोमवार [30.09.2013]
चर्चामंच 1399 पर
कृपया पधार कर अनुग्रहित करें
सादर
सरिता भाटिया

Subhash Chandra Lakhera ने कहा…

कृष्णा जी, आपके सभी सेदोका उस सवाल को उठाते हैं जो नारी की गरिमा से जुड़ा है। साहित्य वही जो समाज को दिशा और दृष्टि दे। आपके विचारों से सादर सहमत होते हुए मैं भी इतना कहना चाहता हूँ कि " अबला कहें / समझ नहीं आया / न ही मन को भाया / क्यों उसे हम / जो हमें जन्म देती / सभी दर्द सहती। " आपको हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

sundar triveni..........wah!!

Krishna ने कहा…

आप सब की प्रतिक्रिया के लिए ह्रदय से आभारी हूँ !

ज्योति-कलश ने कहा…

नारी की गरिमा को दर्शाते बहुत सशक्त सेदोका ...

मर्द होता है
यदि ईंट घर की
औरत भी है गारा
बिना किरण
सम्भव कब होता
भानु का उजियारा ।....बहुत सुन्दर ...बधाई आपको !!

प्रियंका गुप्ता ने कहा…

बड़ी ही खूबसूरती और सशक्तता के साथ आपने नारी की महत्ता और उसके अस्तित्व की गरिमा बयान कर दी...|
हार्दिक बधाई...|

प्रियंका गुप्ता