1
फिर बारिश आई है
प्रेम लिये झरती
टिप-टिप हरषाई है ।
2
मन मेरा भीज रहा
यादों में डूबा
सुधियों में
रीझ रहा ।
3
साँझ सुनहरी घिरती
स्वर्णिम
पंखों से
बूँदों को ले
तिरती ।
4
बूँदें भरमाई हैं
टिपिर टिपिर करती
संदेसा लाई हैं ।
5
आशाएँ भी सरसें
बादल पंख लिये
जब मन पर यूँ बरसें ।
6
आँख -मिचौनी ऐसी !
हम-तुम ,तुम-हम में
फिर भी दूरी कैसी ।
-0-
16 टिप्पणियां:
बूँदें भरमाई हैं
टिपिर टिपिर करती
संदेसा लाई हैं
bahut khub
badhai
rachana
बहुत सुन्दर और मोहक माहिया...
बूँदें भरमाई हैं
टिपिर टिपिर करती
संदेसा लाई हैं ।
बधाई अनुपमा जी.
nice
बूँदें भरमाई हैं
टिपिर टिपिर करती
संदेसा लाई हैं ।
***
सुन्दरतम अभिव्यक्ति... बूंदों को खूब पढ़ा है और अभिव्यक्ति दी है उन्हें!
बधाई!
जाते जाते बरखा फिर लौट आई
जैसे जाती हुई प्रेमिका :)
भीगा भीगा मन !
आशाएँ भी सरसें
बादल पंख लिये
जब मन पर यूँ बरसें ।...बहुत सुंदर...सभी माहिया भावपूर्ण...अनुपमा जी को बधाई !
bohat pyari rachna
बहुत मधुर मोहक माहिया .....आशाएँ सदा सरसें !...बहुत बधाई ..शुभ कामनाएँ !
सुन्दर माहिया के लिए बधाई...|
प्रियंका
मनभावन माहिया .
बधाई
बहुत मन मोहक माहिया !
अनुपमा जी बधाई !
सुन्दर त्रिवेणी में..
महिया सजाई है.
मोहित हुआ मन.
sundar.............bahar barish ho rahi...
padh ke man bhing raha........
बहुत ही सरस और सुन्दर
हृदय से आभार ....हरदीप जी और हिमांशु भैया जी महिया यहाँ देने के लिए और आभार आप सभी का दो शब्द देकर अपने विचार देने के लिए ......!!
Sabhi mahiya bahut manbhavan aur bhavpurn hain ... Priya Anupma ji ko badhai
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