अनिता
ललित
'सुनो न
पापा !
क्यों होते परेशान ?
रहूँगी सदा
आपके समीप मैं
बनके बेटा
न समझना मुझे
कभी भी बोझ !'
क्यों होते परेशान ?
रहूँगी सदा
आपके समीप मैं
बनके बेटा
न समझना मुझे
कभी भी बोझ !'
मन में
घबराते
पापा मुस्काते
थोड़ा सकुचाते से
पापा मुस्काते
थोड़ा सकुचाते से
हौले
कहते ...
'मेरी प्यारी बिटिया !
नाज़ मुझे है
तुझपे अत्यधिक !
पर है रीत,
तुझको तो जाना है
अपने घर !
बसाना है संसार
एक अलग !'
उदास हो बिटिया
हो जाती मौन !
'ओ मेरे प्यारे भैया!
लाडले भैया !
तुम खूब पढ़ना !
आकाश छूना
'मेरी प्यारी बिटिया !
नाज़ मुझे है
तुझपे अत्यधिक !
पर है रीत,
तुझको तो जाना है
अपने घर !
बसाना है संसार
एक अलग !'
उदास हो बिटिया
हो जाती मौन !
'ओ मेरे प्यारे भैया!
लाडले भैया !
तुम खूब पढ़ना !
आकाश छूना
सफलता के
नए !
बाधा हो कोई
इन राहों में कभी ,
मुझे बताना !
सदा पाओगे मुझे ...
अपने पास !'
बाधा हो कोई
इन राहों में कभी ,
मुझे बताना !
सदा पाओगे मुझे ...
अपने पास !'
भैया कुछ सोचता,
हँसके कहता,
नासमझ बहना !
'क्यों
परेशान ?
मैं ठहरा लड़का !
घर का दीप !
राह अपनी खुद
बनाऊँगा मैं !
तुम्हें तो जाना होगा
मैं ठहरा लड़का !
घर का दीप !
राह अपनी खुद
बनाऊँगा मैं !
तुम्हें तो जाना होगा
अपने घर
...
किसी दूल्हे के संग !'
चुप हो जाती
किसी दूल्हे के संग !'
चुप हो जाती
उदास हो
बहना !
माँ है व्याकुल
आँखों में भरे आँसू
करती विदा
कलेजे का
टुकड़ा !
क्यों बनी रीत ?
'ओ मेरे पतिदेव !
हूँ अर्द्धांगनी
क्यों बनी रीत ?
'ओ मेरे पतिदेव !
हूँ अर्द्धांगनी
मैं जीवन
संगिनी,
सहभागिनी ,
सहभागिनी ,
आजीवन
आपकी
अर्पित तुम्हें
वो सभी कुछ सदा
है जो भी मेरा !
आपके सभी दुःख,
कठिनाइयाँ
हैं अब सिर्फ़ मेरी !
बनूँगी ढाल !
काँधे से काँधा मिला
चलूँगी साथ !
आपसे मेरी बस
यही विनती ...
मेरे कर्तव्यों में भी
हों भागीदार !
मेरे प्रियजनों को,
उनके प्रति
मेरे कर्तव्यों को भी
दें आप मान !'
अर्पित तुम्हें
वो सभी कुछ सदा
है जो भी मेरा !
आपके सभी दुःख,
कठिनाइयाँ
हैं अब सिर्फ़ मेरी !
बनूँगी ढाल !
काँधे से काँधा मिला
चलूँगी साथ !
आपसे मेरी बस
यही विनती ...
मेरे कर्तव्यों में भी
हों भागीदार !
मेरे प्रियजनों को,
उनके प्रति
मेरे कर्तव्यों को भी
दें आप मान !'
माथे पे सिलवटें ,
आँखों में चिंता
अनमनाए पति!
बोले, 'ये कैसे
संभव हो पाएगा ?
वो नहीं अब
रहा तुम्हारा घर!
और ये मेरा !
देखो-भालो, समझो !
है अपनाना
तुम्हें, हम सबको ...
जैसे हैं हम !
यहाँ की मर्यादा का
करो पालन !
ससुराल तुम्हारा ,
नहीं मायका !
कोई शर्त तुम्हारी
नहीं चलेगी !'
उदास होके पत्नी ...
चुप हो गयी !
किससे अब पूछे ......
"अपना घर ?"
" कौन अब अपना .. ?"
"इस धरती पर ...??? "
-0-
9 टिप्पणियां:
अनिता ललित जी का यह चोका मन को कहीं बहुत गहरे झकझोरता है। कितना विवस बनाया है हमने अपनी बहन - बेटियों को ? अनिता जी, आपके इस चोका में जो सवाल है, उसका जवाब मिलना ही चाहिए। आपको बधाई ! मुझे भी लगा कि मैं भी इस सवाल का जवाब खोजूं और दिल से जो जवाब मिला, वह सादर यहाँ लिख रहा हूँ :
अपना घर ?:
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घर अपना / सवाल तो सही है / जानें कहां है /
सवाल पुराना है / गुफाएं छोड़ / बने जब मकान
मालिक कौन / ये तय होने लगा
बना पुरुष / परिवार प्रमुख / नारी संगनी
वक़्त बीतता गया / सोच बदली
नारी सोचने लगी / वह कौन है /उसके हक़ क्या हैं
मालूम हुआ / उसका कुछ नहीं
जो कुछ भी है / पिता या पति का है
कानून बने / नारी को हक़ मिले
लेकिन हक़ / मिलेंगे उसे तभी / जब लड़ेगी कभी।
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- सुभाष लखेड़ा
बहुत सटीक प्रश्न उठाया है आपने...कौन सा घर है हमारा...? अक्सर कहते सुना जाता है, लड़की अपने घर ही अच्छी लगती है, पर कोई बताए तो...उसका घर है कहाँ...? मायका पिता-भाई का, ससुराल पति और उसके घरवालों का...| घर तो दूर की बात, कई बार उसकी अपनी पहचान ही नहीं होती कोई...वो सिर्फ मिसेज...के नाम से जानी जाती है|
बहुत अच्छा लगा ये चोका...हार्दिक बधाई...|
सुभाष जी... आपकी सराहना व प्रोत्साहन का दिल से आभार! बस ! यही कहना चाहेंगे कि:
~पुरुष कभी
लड़ा कहीं, किसी से
अपने हक़
अधिकार के लिए?
नारी को ही क्यों
लड़ना पड़े
अपने कर्तव्यों को
निभाने को भी???~
~सादर
अनीता ,,इस चौके का विश्लेषण तो मैं नही कर सकता ..हाँ महसूस कर सकता हूँ ..जो महसूस किया है उसे आज भी (कल का पता नही )एक नारी की नज़र से एक हाइकु के रूप में कहना चाहता हूँ ....
मेरी कीमत
तब सबने जानी
जब जाँ गई ...
---अशोक "अकेला "
प्रियंका गुप्ता जी, अशोक भैया जी.. सराहना व प्रोत्साहन के लिए दिल से धन्यवाद व आभार!:)
अशोक भैया जी... आपका हाइकु दिल को छू गया...
~सादर!!!
कटु यथार्थ को कहता बहुत सुन्दर चोका अनिता जी ...वस्तुतः....
"विस्तृत नभ का कोई कोना ..मेरा न कभी अपना होना "...तब से अब तलक यह तलाश अनवरत जारी है ....
जरूरत है
तू खोज ले भीतर
वह दृढ़ता
जो पिघलती नहीं ..
झूठे सम्मोहन से !...फिर बस कल्याण ही कल्याण ...:)...बहुत बधाई आपको !
सादर
ज्योत्स्ना शर्मा
किससे अब पूछे ......
"अपना घर ?"
" कौन अब अपना .. ?"
"इस धरती पर ...??? "
-0-
अंत सुंदर प्रश्नात्मक अनबुझ ही रहेगा , रचना नारी जगत का सुंदर व्यंग्य .
बधाई
कटु सत्य को कहता बहुत बढ़िया चोका.....अनिता जी बहुत बधाई!
ज्योत्स्ना जी, मंजू जी, Krishna जी ... सराहना तथा प्रोत्साहन देने का हार्दिक धन्यवाद व आभार! :)
ज्योत्स्ना जी... भावपूर्ण तांका !
~सादर!!!
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