डॉ ज्योत्स्ना शर्मा
1
उन्होनें कहा
-
पंक भरा बाहर
पंक भरा बाहर
पग रखना नहीं,
विश्वास मेरा-
खिलेंगे कमल भी
देखना कल यहीं ।
देखना कल यहीं ।
4
मैंने ये रिश्ते
फूल जैसे सहेजे
फूल जैसे सहेजे
तितली की मानिंद
छुए प्यार से
महक बाकी रही
रंग भी खिल गए।
5
क्यूँ सोचते हो
जो तुम दर्द दोगे
तो बिखर जाऊँगी
ये जान लो
धुल के आँसुओं से
मैं निखर जाऊँगी ।
6
सुनो ज़िन्दगी!
तुम एक कविता
मैं बस गाती चली
रस -घट भी
प्रेम या पीडा़ -भरा
पाया ,
लुटाती चली ।
7
ओ रे सावन !
प्यारा मीत सबका
कली का ,चमन का
श्यामल मेघ
संग में लाया कर
यूँ ना भुलाया कर ।
-0-
8 टिप्पणियां:
सुनो ज़िन्दगी!
तुम एक कविता
मैं बस गाती चली
रस -घट भी
प्रेम या पीडा़ -भरा
पाया , लुटाती चली ।
sahi kaha aapne bahut sunder
rachana
ज्योत्स्ना जी ! सभी सेदोका मन को भाए - बहुत सुहाए ! आपको इस उत्तम सृजन के लिए बधाई !
सभी सेदोका भावपूर्ण ४, ५, ६ बहुत बढ़िया !
ज्योत्स्ना जी बधाई!
सुंदर सभी सेदोका .
बधाई
अति सुन्दर भाव एवं शब्द चयन | पहला और छटा अनुपम |
इस स्नेहमयी उपस्थिति के लिए हृदय से आभार आप सभी का !
सादर !
ज्योत्स्ना शर्मा
खूबसूरत सेदोका के लिए हार्दिक बधाई...|
प्रियंका
bahut aabhaar priyanka ji !
jyotsna sharma
एक टिप्पणी भेजें