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गुरुवार, 24 जुलाई 2014

करीब तो आइए



सुभाष लखेड़ा  
1

बेवकूफ़ था

प्रेम माँगता रहा

मैं यहाँ- वहाँ

अब मालूम हुआ

मेरे पास है

प्रेम का वो खजाना

लुटाता रहूँ

जिसे  खुले दिल से

ख़त्म न होगा

ये मेरे जाने तक

या यूँ कहिए

आपके जीने तक

आज से आप

खुशियाँ मनाइए

बस थोड़ा सा

करीब तो आइए

निवेदन है-

आप मुस्कराएँगे

प्रेम गीत गाएँगे   

-0-
विभा रानी श्रीवास्तव
1

नूर की बूँदें

उदासी छीन रही

इक आसरा

तरुणी हुई धरा

अनुर्वरा ना रही ।

-0-


बुधवार, 1 जनवरी 2014

आगत नव-वर्ष सुनो

माहिया
1-डॉ. . ज्योत्स्ना शर्मा
1
आगत नव-वर्ष सुनो
पल की चादर में
तुम केवल हर्ष बुनो !
2
बरसे तो यूँ बरसे
खुशियों की बदरी
कोई न कहीं तरसे !
-0-
2-शशि पुरवार
1
भूलो बिसरी  बातें
नव किरणे लायी
शुभ मंगल सौगाते 
2
नवरंग सजाने है
खुशियों के बादल
घर आज बुलाने है।
-0-
3- मंजु गुप्ता
1
खुशियों को  छलकाता
आया साल नया
जीवन- रस बरसाता  ।
-0-
 सेदोका
1-सुभाष लखेड़ा
1
ये नव वर्ष
है कामना हमारी 
सब भाँति दे हर्ष
आपको फले
आनंदित हों आप
खुशी का दीप जले।
-0-
2-सीमा स्‍मृति
1
ये नया साल
दे खुशियाँ हजार
नयी बहार
हों रास्‍ते
यूँ ही बढ़ता जा
हाइकु परिवार ।

-0-





नव वर्ष वन्दन!

ताँका
1-डॉ सुधा गुप्ता
1
भोर किरन
झिलमिल आँगन
उषा लालिमा
रँग दे तन-मन
नव वर्ष वन्दन!
2
फूटे कोंपल
हर मन की डाली
नूतन वर्ष
चेतना उजियाली
फैलाए खुशहाली।
3
एक वृक्ष को
पुत्र बनाके पालो
नए वर्ष में
शुभ संकल्प करो
पितृ-ॠण चुका लो !
4
कितना अच्छा !
अनाथ शैशव जो
एक सँवारो
बिटिया ले केगोद
शिक्षा-भार उठा लो ।
-0-
2-पुष्पा मेहरा      
1
 अभिनंदन 
 नव वर्ष तुम्हारा
 सप्त रंग हैं
 सपन सघन हैं
 नवल किरण है 
-0-
3- सुभाष लखेड़ा
1
स्वीकार करें
आप शुभकामना
नव वर्ष की
बीती ताहि बिसारें
भविष्य को सँवारें।

-0-

सोमवार, 28 अक्टूबर 2013

हमारी उम्र

सुभाष लखेड़ा   

हमारी उम्र
रहे हमारे पास
उनकी उम्र
रहे उनके पास
दीर्घजीवी हों
सदैव स्वस्थ रहें
वह और मैं
हाथों में रहें हाथ 
जीवन भर 
अपनी उम्र न दें  
वे कभी मुझे  
उम्र किसी से लेना  

बेवकूफी है
वे  मरें, हम जियें
आखिर किसलिए।
-0-

मंगलवार, 8 अक्टूबर 2013

ढलती शाम

ताँका-
सुभाष लखेड़ा 
1
ढलती शाम 
बेचैन करे हमें   
जब वो बेटी 
बाहर गई है जो 
लेकिन नहीं लौटी।
2
ढलती शाम 
आँखों में आँसू लाए  
जब भी हमें  
याद उनकी आए, 
जिनसे धोखे खाए।    
-0-
माहिया-डॉ सरस्वती माथुर 
1
बोलो -कब  आओगे ?
डोली में अपनी
मुझको ले जाओगे ।
2
यादों की है डोली
अब तो आजाओ
तुम मेरे हमजोली

बुधवार, 25 सितंबर 2013

दुआओं का असर

सुभाष लखेड़ा 
1  
अदब घटा  
बड़ों का दुनिया में 
सिर्फ तब से  
दुःख दर्द न बाँटे  
अपनों के जब से। 
2
कम हो गया 
दुआओं का असर 
दिल से नहीं 
निकलती लब से  
ये दुआएँ जब से। 


-0-

शुक्रवार, 13 सितंबर 2013

साथ चली तन्हाई

1-डॉ हरदीप कौर सन्धु 
1.
उदास  धुँध 
अँधियारे -लिपटी 
गुमनाम ज़िन्दगी,
ढूँढ़ रही है -
उजली किरणों की 
रंगीन परछाई  
 2.
काते अकेला 
विरह की पूनियाँ 
मन-पीड़ा का चर्खा
छाया त्रिंजण 
गुम है कहीं आज 
हम ढूँढ़ न पाए । 
3.
बावरा मन 
भटके वन-वन 
साथ चली तन्हाई 
खुद को ढूँढ़े 
अनजान राहों में 
खुद की परछाई । 
4
भावों की छाया
सारे कर्म हमारे
निर्मल-कलुषित,
हम पावन
तो धरा मधुबन
खिलते उपवन ।
-0-
2-सुभाष लखेड़ा 
1. 
सूरज डूबा 
खोज रहा हूँ यहाँ 
अपनी परछाईं 
यह क्यों हुआ 
उजाले के जाते ही 
क्यों हो गई जुदाई। 
2
परछाइयाँ 
कभी नहीं बनना 
तुम किसी के साथ 
होगा अँधेरा
बाट नहीं सूझेगी
हो जाओगे अनाथ  ।

-0-
दिल्ली के साकेत कोर्ट ने दिसम्बर काण्ड के दरिन्दों को अभी -अभी फाँसी की सजा सुनाई है। यह इस बात का प्रमाण है कि सताए गए प्राणी की परछाई भी बहुत दूर तक पीछा करती है । इस अवसर पर कुछ दिन पूर्व प्राप्त ज्योत्स्ना प्रदीप के दो ताँका दिए जा रहे हैं ।
सम्पादक द्वय
-0-
वो सबला थी -ज्योत्स्ना प्रदीप
1
वो सबला थी
नहीं कोई कामिनी
कड़कती दामिनी,
खूब गरजी
दिलों को हिला गई
देश को मिला गई ।
2.
वो बेगुनाह 
खड़ी नभ की राह
नेत्र-जल अथाह
लिये है आह
न्याय की संवेदना 
अचेत में चेतना !

-0-