सुभाष लखेड़ा
1
बेवकूफ़ था
प्रेम माँगता रहा
मैं यहाँ- वहाँ
अब मालूम हुआ
मेरे पास है
प्रेम का वो खजाना
लुटाता रहूँ
जिसे खुले दिल से
ख़त्म न होगा
ये मेरे जाने तक
या यूँ कहिए
आपके जीने तक
आज से आप
खुशियाँ मनाइए
बस थोड़ा सा
करीब तो आइए
निवेदन है-
आप मुस्कराएँगे
प्रेम गीत गाएँगे ।
-0-
विभा
रानी श्रीवास्तव
1
नूर
की बूँदें
उदासी
छीन रही
इक
आसरा
तरुणी
हुई धरा
अनुर्वरा
ना रही ।
-0-
6 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर चोका आदरणीय सुभाष लखेड़ा जी !
सुन्दर ताँका विभा श्रीवास्तव जी !
~सादर
अनीता ललित
आप मुस्कराएँगे
प्रेम गीत गाएँगे ।
बहुत सुंदर सुभाष लखेड़ा जी !
विभा जी आप्का ताँका बहुत ही सुंदर है} बधाई !
बहुत सुन्दर 'प्रेम गीत' और 'नूर की बूँद' ...हृदय से बधाई आ० लखेड़ा जी एवं विभा जी !
Bahut Sunder
चौका और तांका दोनो ही बेजोड....,
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