डॉ सुधा गुप्ता
1
दसों दिशाओं
सजी बन्दनवार
सुगन्धि-अभिसार,
वर्षा -वधूटी
आज करके आई
अभिनव शृंगार ।
2
सजी बैठी
नील परिधान में
शोभा अपरम्पार,
दर्पण देख
सुनहली बिन्दिया
लगा ली सुकुमार ।
3
‘परछन’ की
प्रकृति सासू-माँ ने
जाती है बलिहार
बच्चों में बाँटे
चाँदी के नए सिक्के
यूँ नज़र उतार ।
4
शुभ प्रवेश
स्वागत ! भूमि-श्रिया!
अल्पना सजी द्वार
खेत झूमते :
तव शुभ चरण
भर देंगे कोठार ।
5
दूर भगा दी
‘अकाल’ परछाई
‘अल-नीनो’ की मार
हे मनोहरा!
अन्तर्मन से मानें
तुम्हारा उपकार
-0-
[ परछन= ( प्रच्छन्न)बुरी नज़र या किसी अहितकारी प्रभाव से मुक्त करने के
लिए दीपक चारों ओर घुमाकर दूल्हे की आरती करना। ]
8 टिप्पणियां:
प्रकृति के सभी बिंब बहुत ही मनोहारी हैं। सुधा दीदी को सुंदर सृजन के लिए साधुवाद।
दसों दिशाओं
सजी बन्दनवार
सुगन्धि-अभिसार,
वर्षा -वधूटी
आज करके आई
अभिनव शृंगार ।
अत्यंत मोहक बिंब ! वर्षा का मानवीकरण अत्यंत मनोहारी है।
नमन दी को।
बहुत सुन्दर सेदोका सुधा दी के...शानदार सीखने लायक बिम्ब-प्रस्तुति...सादर प्रणाम व बधाई !!
बहुत सुन्दर ,मोहक बिम्ब हैं ....
दर्पण देखती " वर्षा वधूटी " ,परछन करती सासू माँ ,बच्चों में बंटते चाँदी के सिक्कों की मनोहर कल्पनाएँ मन को अनमोल खजाने से भर गईं ....बहुत आभार दीदी ..सादर नमन !
ज्योत्स्ना शर्मा
varsha ka sunder manvikaran ,sabhi bimb manmohak, anuthe kalpnao se saje sedoka....sudha ji apko sadar naman saath hi abhaar in anmol ratno ke liye .
वर्षा ऋतु पर बेहतरीन सेदोका सृजन के लिए डॉ सुधा गुप्ता जी हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं - सुभाष लखेड़ा
charon or bikhri prkrti ki chata ko naman...
इनको पढ़ के तो बस यही शब्द निकलता है मुँह से...अप्रतिम...|
हार्दिक बधाई...|
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