सेदोका
कृष्णा वर्मा
1
बरसे मेंह
धुले छत-आनन
स्नान करें दीवारें,
गंदे जल से
मुख भर करते
हैं कुल्ले परनाले ।
2
छनकी बूँदें
सरसे धरती भी
ज्यों कविता में छंद
मंद समीर
सरगम गाए ज्यों
खनके बाजूबंद ।
3
बरसी घटा
मचली हैं लहरें
जा -जा छुएँ किनारे
तट के काँधे
चढ़कर लहरें
झाँकें देखें नज़ारे।
-0-
ताँका
घनश्याम नाथ कच्छावा
1
गर्म तवे -सी
तपती धरा पर
वर्षा की बूँद
छम-छम सी बोली
नभ से गिर कर ।
2
प्यार कीजिए
तभी जान पाओगे
जीने का सच
वरना जो जन्मा है
उसको मरना है।
-0-
4 टिप्पणियां:
कृष्णा वर्मा जी के बेहतरीन सेदोका और घनश्याम नाथ कच्छावा जी के सुन्दर ताँका - सावन में सुंदर / सरस सृजन। हार्दिक बधाई !
बहुत सुन्दर बिम्ब ....
बरसें मेंह , खनके बाजूबंद और देखें नज़ारे ...तीनों लाजवाब.. बहुत बधाई कृष्णा जी
जीने का सच ...सुन्दर तांका कच्छावा जी बहुत बधाई ..नमन !
krishna ji v ghanshyam ji ko savan ke khanakte sedoka aur jeevan ke sach ko ubhaarte taanka...utkrisht rachnao ke liye karbadh badhai.
कृष्णा वर्मा जी के बेहतरीन सेदोका और घनश्याम नाथ कच्छावा जी के सुन्दर ताँका - सावन में सुंदर / सरस सृजन। हार्दिक बधाई !
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