ताँका-
सुभाष
लखेड़ा
1
ढलती शाम
बेचैन करे हमें
जब वो बेटी
बाहर गई है जो,
लेकिन नहीं लौटी।
2
ढलती शाम
आँखों में आँसू लाए
जब भी हमें
याद उनकी आए,
जिनसे धोखे खाए।
-0-
माहिया-डॉ सरस्वती माथुर
1
बोलो -कब आओगे ?
डोली में अपनी
मुझको ले जाओगे ।
2
डोली में अपनी
मुझको ले जाओगे ।
2
यादों
की है डोली
अब तो
आजाओ
तुम मेरे
हमजोली ।
3 टिप्पणियां:
आज के यथार्थ को कहते ताँका बहुत प्रभावी हैं ...और बहुत मधुर माहिया ..दोनों रचनाकारों को हार्दिक बधाई !!
वास्तविकता व्यक्त करते सुन्दर ताँका ! सरस माहिया !
सुभाष जी, सरस्वती जी बहुत-२ बधाई!
सोचने को मजबूर करते तांका और खूबसूरत माहिया के लिए हार्दिक बधाई...|
प्रियंका
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