सीमा स्मृति
1
ये सिलसिला
खौफ के घने साए
बढ़ते चले जाएँ,
माँ- बेटी -बहू
हर दिल पे छाएँ
काश ऐसा हो जाए।
2
वो नाजो पली
काम पर थी चली
बाधाएँ रोज़ मिलीं,
पार न पाए
हर ओर दानव
कैसे लाज बचाए।
3
हर शहर
दरिन्दे हैं घूमते
जाल हैं बिछाते,
क्यों मैं बेटी हूँ
रोज देते हैं घाव
देवी कह सताते ।
-0-
8 टिप्पणियां:
आपके सेदोका उस समस्या को बयां करते हैं जिससे आज हम सब चिंतित हैं। नारी शक्ति की अवहेलना और उपहास, दोनों समाज और देश के लिए विष समान हैं।
सीमा स्मृति जी, आपको साधुवाद !
भावपूर्ण...दिल को छूने वाले...बधाई...|
प्रियंका
खौफ के घने साए
बढ़ते चले जाएँ,
हर ओर दानव
कैसे लाज बचाए।
kaash is samasya ka koi hal nikal paaye .... ekdam sahi kaha aapne ... aaj har or daanav hi daanav najar aate hain ... aise me laaj bache to kaise
आदरणीया सुन्दर, वास्तविक रचना के लिए बधाई स्वीकार करें।
उत्तम भावाभिव्यक्ति
सामयिक सुंदर सेदोका नारी शक्ति की अवेहलना .
बधाई .
स्त्रियों पर आधारित सभी सेदोका बहुत अच्छे, हार्दिक बधाई.
कटु सत्य कहते बहुत प्रभावी सेदोका ...बहुत बधाई !!
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